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________________ ६८ दूसरा भाग । 1 (२०) रावणने विद्याधरोंकी सम्पूर्ण सुंदर २ कन्याओंके साथ विवाह किया। एक दिन रावण नित्यलोक नगरके राजा नित्यलोकजिनकी राणीका नाम श्रीदेवी था - की पुत्री रत्नावली से विवाह कर नव वधूको साथ ले पुष्पक विमान द्वारा आरहा था । कैलाश पर्वत पर आते ही जिन मंदिर और वाली मुनिके प्रभावसे विमान आगे न चल सका । वाली मुनि उस समय वहां तप कर रहे थे । रावण विमान अटकनेका कारण अपने मंत्री मारीचसे पूंछा | मंत्रीने कहा अनुमान होता है कि यहां कोई साधु ध्यान कर रहे हैं । अतएव यातो नीचे उतर कर उनकी वंदना करो अथवा विमान लौट कर दूसरे मार्गसे ले चलो । तब रावण नीचे उतरा । वाली मुनिको देख कर रावणको पूर्व शत्रुता स्मरण हो आई और वाली मुनिराजकी निंदा करने लगा । तथा विद्याबलसे पर्वतके नीचे बैठ पर्वतको उखाड़ना चाहा | पर्वत डगमगाने लगा । उस समय मुनिराजने पर्वत परके जिन मंदिरोंकी रक्षाके विचारसे अपनी काय ऋद्धिको कार्य में परिणत करना उचित समझ अपने पैर के अंगुष्ठको पर्वत पर धीरे से दबाया । उनके अंगुष्ठ दबाने मात्र से जो रावण पर्वतको उखाड़ फेंकने का विचार कर रहा था वह पर्वतके भारसे दवने लगा । आँखें प. ट कर बाहर खानेकी दशा में हुईं, नेत्रोंसे आंसू गिरने लगे । तब रावणकी स्त्री, मंत्री आदिने क्षमा प्रार्थना की जिससे मुनिराज ने अपने अंगुष्ठको ढीला किया फिर रावणने पर्वतके नीचे से निकल कर वाली मुनिकी स्तुति और अपराधक्षमाकी प्रार्थना की। उस समय भक्ति के वश हो रावणने अपनी भुजा में से
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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