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प्राचीन जैन इतिहास। ६७
__(१९) इघर वानर वंशियोंमें सूर्यरजके यहां बाली और . सुग्रीव नामक दो पुत्र तथा श्रीप्रभा नामक कन्या उत्पन्न हुई। सूर्यरज बालीको राज देकर मुनि हो गये । बाली बड़ा बलवान्
और धर्मात्मा था। इसे देवशास्त्र गुरुके सिवाय अन्यको प्रणाम न करनेकी प्रतिज्ञा थी। बलके कारण यह रावणको भी कुछ नहीं समझता था। इसी लिये क्रुद्ध होकर रावणने दूतके द्वारा बालीसे कहलाया कि तुम यातो मेरी आज्ञा मानों, प्रमाण करो, और अपनी बहिन श्रीप्रभा मुझे दो अथवा युद्ध करो। बालीने प्रणाम करने की बातके सिवाय अन्य सब स्वीकार किया। परन्तु रावण ने स्वीकार न कर बालीपर चढ़ाई की। बाली भी युद्ध के लिये उद्यत हुआ परन्तु मन्त्रियोंने उसे रोका। उस समय बालीने अपने य उद्गार निकाले-" मंत्रिगण ! मैं आत्मश्लाघा नहीं करता परन्तु मैं इस रावणको और इसकी सेनाको बाये हाथकी हथेलीसे चूर कर सकता हूँ। परन्तु मैं विचार करता हूं कि इस क्षणिक जीवनके लिये मैं निर्दय कर्म क्यों करूँ ? । मेरे जिन हाथोंने भगवान् जिनेन्द्रको प्रणाम किया, भगवान् जिनेन्द्रकी पूजा की, और दान किया, तथा पृथ्वीकी रक्षा की, वे हाथ दूसरेको प्रणाम कैसे कर सकते हैं ? जो हाथोंको जोड़कर दूसरों को प्रणाम करता है वह तो किंकर है-गुलाम है। उसका जीवन और ऐश्वर्य निरर्थक है ।" यह कह कर बालीने अपने छोटे भाई सुग्रीवको राज्य देकर श्रीगगनचंद्र मुनिके द्वारा दीक्षा ली। और विकट तप करने लगे। सुग्रीवने रावणकी आज्ञा मानना स्वीकार किया और अपनी बहिनका रावणके साथ विवाह किया ।