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________________ दुसरा भाग। और उससे सूर्य-रज, रक्षरज तथा अन्य बन्दी जनों को छुड़वाया। यह समाचार सुनते ही यम विशाल सैनाके साथ रावणसे लड़ने आया । घनघोर युद्ध हुआ। अंतमें रावणकी जय हुई । यम अपने जमाई और स्वामी इन्द्र के पास भाग गया। रावणने किहिकंधपुर सूर्यरजको दिया । वानर वंशियोंकी यही पुरानी राजधानी थो । निसको इन्द्रने छीन किया या । रक्षरनको किहिकम्पुरका रान दिया । यमके द्वारा इन्द्रने जब रावणके समाचार सुने तब इन्द्र रावणसे लड़नेको उद्यत हुआ । परन्तु मंत्रियोंने रावणके बलकी प्रशंसा कर इन्द्रको इस युद्धसे पराङ्गमुख किया । इस प्रकार रावणका प्रभाव दिन प्रतिदिन बढ़ता गया। यमको जीत कर रावण अनेक रानाओंके साथ लंकामें आये । सर्व प्रना रावणके पाप्त आकर रावणकी प्रशंसा करने लगी। ___(१८) एक दिन रावण राना प्रवरकी पुत्री तन्दरीसे विवाह करनेके लिये गया हुआ था। इस अवसरमें राना मेघवभका पुत्र खरदूषण आकर रावणकी बहिन चन्द्रनखाको हर ले गया । खरदूषण बलवान् और चौदह सहस्र विद्याधरोंका स्वामी था। इसे प्रबल समझ कुम्भकर्ण विभीषणने पीछा नहीं किया। रावण जब घर आया और यह समाचार सुना तब क्रोधित हो और विना किसीको संग लिये खरदूषणको मारने जाने लगा। मंदोदरीने उन्हें उस समय मना किया और कहा कि तुम्हारी बहिन जब खरदूषण हर ले गया ऐसी अवस्थामें उसे मारनेसे चन्द्रनखा विधवा हो जायगी। अतएव अब खरदुषणका पीछा करना उचित नहीं । यह सम्मति रावण मान गया ।
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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