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________________ ६० दूसरा भाग। पाठ २३ । आठवें प्रति नारायण रावण और उनके बन्धु । * (१) रानी केकसीने रावणके गर्भमें आनेके पहिले तीन स्वप्न इस प्रकार देखे थे (१) एक सिंह अनकों गजेन्द्रोंके गण्डस्थल विदारण करता हुआ आकाशसे पृथ्वीपर आया और रानीके मुखमें प्रविष्ट होकर कुक्षिमें ठहर गया । (२) सूर्य रानीकी गोदमें आया । (३) चन्द्रको अपने सन्मुख उपस्थित देखा । (२) इन स्वप्नोंके फलमें राजा रत्नश्रवाने रानीसे कहा कि तेरे तीन पुत्र होंगे । जो बलवान् , धर्मात्मा और बड़े तेजस्वी होंगे । पहिला पुत्र क्रूर और उद्धत होगा । (३) जिस समय रावण गर्भ में आया उसी समयसे माताकी चेष्टा क्रूर हो गई और उसका स्वभाव उद्धत हो गया । (४) रावण जब उत्पन्न हुआ तब उसके वैरियोंके यहाँ अशुभ चिन्ह हुए । रावण महा बलवान् सुन्दर और तेजस्वी था । राक्षस वंशके मूल पुरुष मेघवाहनको भीम इन्द्रने जो हार दिया था उसे रावणने उत्पन्न होनेके पहिले ही दिन-पास रक्खा हुआ था सो-उठा लिया। उस हारकी रक्षा हजार देव कहते थे । हारकी ज्योतिमें रावणके कई प्रतिबिम्ब रावणके पिताको दिखाई दिये अतएव उसका नाम दशानन प्रसिद्ध हुआ । (५) रावणके बाद कुम्भकर्ण, कुम्भकर्णके बाद चन्द्रनखा और
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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