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________________ प्राचीन जैन इतिहाम। ६१ उसके पश्चात् विभीषण उत्पन्न हुआ। कुम्भकर्ण और विभीषण शान्त प्रकृतिके थे। रावण बड़ा क्रूर, अभिमानी और उद्धत था। (६) एक दिन वैश्रवण (जो कि इन्द्र द्वारा नियुक्त लङ्काका अधिकारी था) विमान पर बैठा बड़े गर्वके साथ आकाश-मार्गसे जा रहा था। उस समय रावण अपनी माताकी गोदमैं बैठा हुआ था। रावणने मातासे पूछा कि यह कौन है ? माताने उत्तरमें कहा कि यह तेरी मौसीका बेटा है । और इन्द्रका कर्मचारी है । लङ्कामें इन्द्रकी ओरसे रहता है । बड़ा अभिमानी और बलवान् है । इन्द्रने तेरे दादा मालीको मार कर हमसे लङ्का छीन ली है । तेरे पिता लङ्काको पुनः अपने अधिकारमें लौटा लानेकी चिंतामें सदा मग्न रहते हैं और तेरे पर उनका भरोसा है । इस पर विभीषणने मातासे कहा कि-"जननी ! तू योद्धाओंकी माता है । तुझे इस प्रकार दूसरोंकी प्रशंसा करना उचित नहीं। रावण बड़ा बलवान है। इसके समान किसीमें बल नहीं है । इसके शरीरमें श्रीवास आदि कई शुभ लक्षण हैं । " रावणने कहा " माता ? मैं स्वयं अपनी प्रशंसा क्या करूँ ! परन्तु इतना मैं कहता हूं कि जितना बल सम्पूर्ण विद्याधरोंमें है, उतना मेरी एक भुजामें है। (७) इसके बाद रावण और उसके साथ दोनों भाई भीमनामक बनमें विद्या सिद्ध करनेके लिये गये। इनके कार्यमें जम्बूद्वीपके रक्षक अनानत नामके देवने विघ्न डाले परन्तु इन तीनों भाइयोंने विघ्नोंकी पर्वाह नहीं की। तब रावणको अनेक विद्याएं सिद्ध हुई तथा कुम्मकर्णको पांच और विभीक्षणको चार
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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