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प्राचीन जैन इतिहास । ५९
(१७) इन्द्रकी सहायता के अभिमान से जब विद्याधरोंने लंकाके स्वामी मालीकी आज्ञा मानने में आनाकानी की तब मालीने विद्याधरों पर चढ़ाई की। विद्याधरोंने इन्द्रकी सहायता से मालीको युद्धमें मारा । (१८) मालीके मरने पर सुमाली और माल्यवान्का इन्द्रने पीछा किया। और कुछ दूर आगे जाकर सोम नामक लोकपालको लंका विजय करनेकी आज्ञा दे आप लौट आया । और अपने माता पिताके चरणोंपर नमस्कार किया । माली मारे गये ।
(१९) सुमाली और माल्यवान् भागकर पाताल लंका पहुंचे । (२०) लंका विजय कर इन्द्रने अपनी ओरसे वैश्रवण नामक विद्याधरको लंकाका लोकपति बनाया । वैश्रवण बड़ा बली श्री । इसके पिताका नाम विश्रव था जो यज्ञपुरका स्वामी था । इसकी माता कौतुकमङ्गल नामक नगर के राजा कामबंदुकी कन्या कौशिकी थी। जिसकी छोटी बहिन केकसीका विवाह सुमालीके पुत्र रत्नश्रवाके साथ हुआ था ।
(२१) रत्नश्रवा महान् विद्वान और धर्मात्मा था । इस पुष्पक नामके वनमें विद्या सिद्ध की थी । विद्या सिद्ध करते समय उसकी सेवा के लिये कामबिंदुने अपनी पुत्री केसीको भेज दिया था । वनमें रत्नश्रवाको मानस-स्तम्भीनी विद्या सिद्ध हुई । उस विद्या के द्वारा उसने उस वनमें पुष्पाङ्कित नगर बसाया और फिर केकसीके साथ विवाह किया । केकसी महान गुणी और रूपवती थी । इस दम्पतिमें परस्पर बड़ा प्रेम था । येही दोनों रावण के मातापिता हैं ।