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________________ दुसरा भाग। तट नामक वनमें किहिकन्धपुर नगर वसाया और वहीं रहने लगा। अशनिवेगके दूत निर्धातने लङ्का ले ली। सुकेशी पाताल लङ्कामें ही रहता था। सुकेशीके माली सुमाली और माल्यवान नामक तीन पुत्र हुए। इन तीनोंने निर्घातको मारकर अपनी राजधानी लङ्का पुनः छुड़ा ली तथा विमयार्धकी दोनों श्रेणियोंको जीत लिया । . (१३) बानर वंशमें किहिकन्धके सूर्यरज और रक्षरज नामक दो पुत्र हुए । और सूर्यकमला नामक पुत्री हुई । जिसका मेघपुरके राजा मेरुके पुत्र मृगारिदमनके साथ विवाह किया। ... (१४) माली, सुमाली और माल्यवान् इन तीनों माइयोंकी एक २ हजार रानिया थीं । सुकेशीके वैराग्य धारण करने पर बड़े पुत्र माली उत्तराधिकारी हुए। उधर किहिकन्धने भी सूर्यरजको राज्य देकर दीक्षा धारण की । माली और उसके दोनों भाई बड़े बलवान तथा अभिमानी थे, इन्हें इन्द्र विद्याधरने युद्ध में जोता । (१५) इन्द्र, रथनूपुरके राजा सहस्रारि विशाधरका पुत्र था। (१६) इन्द्र बड़ा बलवान राजा था। जब इन्द्र गर्भ में आया था उस समय उसकी माताको इन्द्रके समान विलास करने. की इच्छा हुई थी । इसीलिये इसका नाम भी इन्द्र रक्खा । इन्द्रने भी अपने सर्व कार्य स्वर्ग तथा इन्द्रके समान किये। लोकपालोंकी स्थापना की । और उनके नाम भी वेही रक्खे जो उर्व लोकके स्वर्गके लोकपालोंके हैं। अपनी सभाके सभासद भी स्वर्ग ही के समान नियत किये । मन्त्रीका नाम बृहस्पति रक्खा । हाथीका ऐरावत नाम रक्खा । सारांश यह है कि जैन शास्त्रोंमें स्वर्ग और उसके इन्द्रकी विभूति, सभा आदिका निस प्रकार वर्णन है, उसकी नकल विद्याधर इन्द्रने की।
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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