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प्राचीन जैन इतिहास। ५७ आज्ञा दी तब इसका वंश वानर वंशके नामसे प्रसिद्ध हुआ । अमरप्रभ भगवान् वासुपुज्यके समयमें हुआ था।
(८) अमरप्रमके बाद कपिकेतु, विक्रमसम्पन्न, प्रतिबल, गगनानंद, खेचरानंद, गिरिनंद आदि क्रमशः उत्तराधिकारी हुए।
(९) भगवान् मुनिसुव्रतनाथके समयमें वानरवंशमें महोदधि नामक राजा हुआ । और लंकाका उरत्ताधिकारी विद्युत्केश हुआ । इन दोनोंमें बहुत गाढ़ी मैत्री थी । विद्युत्केश दीक्षा धारण कर स्वर्ग गया। जब यह समाचार महोदधिने सुने तब उसने भी दीक्षा धारण की.।
(१०) विद्युत्केशका उत्तराधिकारी सुकेशी और महोदधिका प्रतिचन्द्र हुआ । प्रतिचन्द्रने भी अपने पुत्र किहिकन्धको राज्य दे और छोटे पुत्र अंधको युवराज बना दीक्षा धारण की।
(१२) राजा किहिकन्धके गले में आदित्यपुरके राजा विद्यामंदिरकी पुत्री श्रीमालाने स्वयम्वर मण्डपमें वर-माला डाली । इसपर विजयाध पर्वतकी दक्षिण श्रेणीके रत्नपुर नामक नगरके राजा अशनिवेगका पुत्र विजयसिंह क्रोधित हुआ और दोनोंका युद्ध हुआ। युद्ध में विजयसिंह मारा गया । तब विजयसिंहके पिता अशनिवेगने युद्ध किया। इधर लङ्काके राजा सुकेशीने किहिकन्धकी सहायता की । परन्तु युद्ध में अशनिवेगने किहिकन्धके छोटे भाई अन्ध्रको मारा । तब विहिकन्ध, सुकेशीके इस प्रकार समझानेसे कि इस समय शत्रु बलवान् है अतएव इसे निर्बल होने तक छिप कर रहना उचित है, युद्धसे पीठ दिखा कर अपने मित्र सुकेशीके साथ पाताल लङ्का चला गया । कुछ दिनों बाद किहिकन्धने करन