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________________ ५६ दूसरा भाग । उन्हें मनुष्योंके समान हाथ-पैर वाले लिखा है । वह राजा भी उन बन्दरोंपर बहुत ही प्रसन्न हुआ । और उसने स्वयं कई पाले तथा उनके चित्र बनवाये । राजा श्रीकण्ठने आष्टारिकामें देवोंको नन्दीश्वर द्वीप जाते देख नन्दीश्वर जानेका विचार किया। और अपने विमान द्वारा गमन किया परन्तु जब मानुषोत्तर पर पर्वत से आगे उसका विमान न जासका तब उसने अपनी निंदा की और भविष्य में नंदिश्वर जानेके योग्य होने की इच्छासे दीक्षा धारण की । अपना राज्य बड़े पुत्र वज्रकण्ठको दिया । (७) वज्रकण्ठने अपने पुत्र इन्द्रायुद्ध - प्रभो राज्य देकर वैराग्य धारण किया । इन्द्रायुद्ध - प्रभके बाद इन्द्रमति, इन्द्रमतिके बाद मेरु, मेरुके पश्चात् मंदिर, मंदिरके अनंतर समीरणगति, और समीरणगतिके बाद अमरप्रभ वानर द्वीपके उत्तराधिकारी हुए । अमरप्रभने लंका राक्षसवंशी राजाकी कन्या गुणवती से विवाह किया । गुणवती जब घर पर आई और उसने श्रीकण्ठके बनवाये चित्रोंको देखा तब वह बहुत डरी। उसे डरते देख अमरप्रभ अपने सेवकों पर नाराज हुआ कि ऐसे चित्र मेरे महल में क्यों बनवाये गये । परन्तु जब उसे यह मालूम हुआ कि ये चित्र उसके आदि पुरुष महाराज श्रीकण्ठने बनवाये हैं । और श्रीकण्ठके बादके उत्तराधिकारी मी मंगलिक कार्यों में उन चित्रोंको बनवाते रहे हैं तब उसने उन चित्रोंकी बड़ी प्रतिष्ठा करना प्रारम्भ की। यहां तक कि सबको मुकुट और ध्वजा पर भी बंदरोंका चित्र रखने की आज्ञा दी । तथा विजयार्द्धकी दोनों श्रेणियोंका विजय किया । इसने जब ध्वजाओं पर वानरोंका चित्र रखनेकी
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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