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प्राचीन जैन इतिहास। ५१ कुमारने निर्भय होकर अपने को तत्पर बतलाया । फिर मंत्री पर्वत पर चढ़ा । वहां महाबल नामक गणधर मुनि विराजमान थे उनकी वंदना कर अपने आनेका कारण निवेदन किया । गणधर देवने कहा कि ये दोनों युवक तीसरे भवमें नारायण और बलदेव होनेवाले हैं । उनकी तुम चिंता मत करो। यह सुनकर मंत्रीने उन दोनों कुमारोंको गणधर देवके समीप उपस्थित कर धर्मोपदेश दिलाया जिससे श्रवण कर दोनों कुमारोंने दीक्षा धारण की । मंत्री लौट गया और राजासे कहा कि मैं एक सिंहके समान निर्भय वनवासी पुरुषके सुपुर्द दोनों कुमारोंको कर आया हूं। वह अपने काममें बहुत तीव्र है । और उसने सब सुख छोड़ रखे हैं । राजाको यह सुनकर पुत्र वियोगका दुःख उमढ़ा और कुछ चिंतित हो गया । फिर मंत्रीसे सत्य २ कहनेके लिये कहा। मंत्रीने जो कुछ घटना हुई थी ठोक २ कह दी उसे सुन राना प्रापति बहुत प्रसन्न हुआ। और स्वयं भी दीक्षा लेनेको उद्यत हुआ । अपने कुलके एक योग्य पुरुषको राज्य देकर उसने भी महाबल गणधरसे ही दीक्षा ली। वे दोनों कुमार तप करने लगे। एक बार गत पाठमें बतलाये हुए नारायण और बलभद्रको परम ऐश्वर्यके साथ नगरमें प्रवेश करते देखकर निदान बंध किया कि हम भी इसी प्रकार नारायण बलभद्र बनें । आयुके अंतमें चार आराधनाओंको आराध कर दोनों कुमार सनत्कुमार स्वर्गमें उत्पन्न हुए । इन्हीं दोनोंके जीव इस स्वर्गसे चय कर निदान बंधके कारण राम और लक्षमणके रूपमें बलदेव नारायण हुए।