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दूसरा भाग ।
साको आशक्त कर सकेंगे आप अवश्य पधारें । इन दोनोंके कहने में आकर राजा सगरने जाना निश्चय किया । इधर विश्वभूत और मंदोदरीने जाकर सुलसाको भी सगरपर आशक्त किया । पर सुलसाकी माताने अपने भाई पोदन. पुर नरेश महाराज नृगनिंगल के पुत्र मधुपिंगलके वरमाला पहनाने का आग्रह किया, इसे सुलसाने स्वीकार किया | मंदोदरीका आना जाना सुलप्साकी माताने बंद कर दिया तब मंत्री विश्वभूतिने मधुपिंगलको स्वयंवर सभामें ही न आने देनेका षड्यंत्र रचा। अर्थात् वर परीक्षा संबंधी एक स्वयंवर विधान नामक ग्रंथ लिखकर जमीन में गाढ़ आया और कुछ दिनोंबाद प्रगट किया कि यह महत्त्व पूर्ण ग्रन्थ पृथ्वी तलसे निकला है और बहुत मान्य है । और उसे राजकुमारों की सभा में पढ़कर सुनाया । उसमें लिखा गया था कि जिसकी आंख पीली हो उसे न तो कन्या देना चाहिये और न ऐसोंको स्वयंवर में आने देना चाहिये । मधुपिंगलकी आँखें पीली थीं अतएव वह स्वयं वहाँसे अपने में यह दुर्गुण जानकर लज्जित और क्रोधित होकर निकल गया और हरिषेण गुरुके निकट तप धारण किया । राजा सगरका सुलसा के साथ विवाह हो गया । और मधुपिंगल संयमी होकर तप करने लगा । एक दिन वह किसी नगर में आहार लेने गया । वहाँ एक निमित्तज्ञानीने इसके शरीर लक्षनौको देखकर कहा कि यह राजा होना चाहिये फिर यह