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________________ प्राचीन जैन इतिहास। ४१ कुछ दान दिया था। आपके साथ बहुतसे राजाओंने भी दीक्षा ली थी । अंतमें मृत्यु हो जाने पर चक्रवर्ति हरिषेणका जीव सर्वार्थसिद्धिको गया । (नोट) पद्मपुराणकार हरिषेणके पिताका नाम हरिकेतु और माताका नाम वद्रा लिखते हैं। इनके वर्णनमें लिखा है कि इन्होंने जिनमंदिरोंको बनवा कर पृथ्वी पारसी दी थी। ये कपिल नगरके राजा थे । - - पाठ २० यज्ञकी उत्पत्ति । दशवे चक्रवर्ति हरिषेणके हक हमार वर्षके बाद अयोध्यामें महाराना सगर हुए थे । इन्हीके द्वारा पशुओंके हवन करनेवाले यज्ञ चले हैं । इसीके समय में अथर्ववेदकी उत्पत्ति हुई । यज्ञकी प्रवृत्ति और अथर्ववेदकी उत्पत्तिके विषयमें जैन इतिहास इस प्रकार कहता है कि:---- ( क ) चारणयुगलपुर नामक नगरका राना सुयोधन था। इसकी रानीका नाम अतिथि था । इनकी एक सुलप्ता नामक कन्या थी । इस कन्याका स्वयंवर सुयोधनने किया और उसमे राजकुमारोंको निमंत्रित किया। ( ख ) सगर भी जानेको तैयार हुआ । पर तैल लगाते समय माथेके वालोंमें सफेद बाल दिखनेके कारण जाना उचित नहीं समझा । पर मंदोदरी नामक धाय और विश्वभूत मन्त्रीने आकर कहा कि हम आपके ऊपर प्रयत्नसे सुल
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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