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________________ दूसरा भाग। (२) एक बार चक्रवति हरिषेण अपने पिता पद्मनाभके साथ वनमें गया। वहां अनंतवीर्य मुनिसे धर्मतत्व श्रवण कर पद्मनाभने हरिषेणको राज्य देकर दीक्षा ली । और हरिषेणने श्रावकके व्रत लिये। (३) चक्रवर्तिके पिता पद्मनाभने बहुत तप किया और तपसे कर्मोका नाश कर केवलज्ञान प्राप्त किया । जिप्स दिन पद्मनाभ केवलज्ञानी हुए उसी दिन हरिषेणकी शस्त्रशालामें चक्ररत्न, खड्ग रत्न और दंड रत्न आदि उत्पन्न हुए । वनपालने पद्मनाभके केवलज्ञानके समाचार और शस्त्रशालाके अधिपतने रत्नोंकी उत्पत्तिके समाचार एक साथ कहे । चक्रवति हरिषेण पहिले पिताके केवलज्ञानकी पूजाको गया। वहांसे आकर रत्नोंकी उत्पत्तिका हर्ष मनाया । नगरमें सात सनीव रत्नोंमेंसे पुरोहित, गृहपति, सिलावट और सेनापति ये चार रत्न उत्पन्न हो चुके थे । तीन सनीव रत्न-अश्व-हाथी और चक्रवर्तिकी पट्टरानी होने योग्य कन्या विद्याधर विनयाई पर्वतसे लाये । फिर चक्रवर्तिने छह खंड पृथ्वीकी दिग्विजय की । पूर्वके चक्रवर्तियोंके समान इनकी भी संपत्ति थी। और ये भी छनवे ह नार रानियोंके पति थे। . (४) एक वार कार्तिक मासकी अष्टान्हिकामें महा व्रतकी पूजा कर आप आकाश देख रहे थे सो आकाशमें चंद्रको राहू द्वारा ग्रसित देख आपको वैराग्य उत्पन्न हुआ और अपने पुत्र महासेनको राज्य दे सीमंतक पर्वत पर श्री नाग मुनिश्वरके निकट जिन दीक्षा धारण की । दीक्षा ग्रहण करनेके पहिले आपने बहुत
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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