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प्राचीन जैन इतिहास ।
(२) भगवान् मुनिसुव्रत, राजगृही ( मगध ) के हरिवंशी - महाराजा सुमित्रकी रानी सोमादेवीके गर्भ में श्रावण वदी द्वितियाको आये । आपके गर्भ में आनेके छह माम पूर्वसे आपके जन्म होने तक स्वर्गसे रत्नोंकी वर्षा होती रही । देवियां माताकी सेवा में नियत हुई । गर्भ में आने पर माताने सोलह स्वप्न देखे । इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणकका उत्सव किया ।
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(३) आपका जन्म मिती वैशाख वदी १० मी को हुआ । जन्मसे ही आप तीन ज्ञानधारी थे । इन्द्रादि देवोंने आकर जन्म कल्याणकका उत्सव किया ।
(४) आपकी आयु तेतीस हजार वर्षकी थी और शरीर वीस धनुष ऊंचा था । आपके शरीरका रंग मोरके कंठके रंग
समान था ।
(५) आपके लिये वस्त्राभूषण स्वर्गसे आते थे और वहीं से देवगण भी क्रीडा करने को आया करते थे ।
(६) आप सोल हजार पाँचसो वर्ष तक कुमार अवस्थामें रहे बाद पंद्रह हजार वर्ष तक आपने राज्य किया ।
(७) एक दिन महाराज मुनिसुव्रत मेघ घटाको देख रहे थे । इन घटाओंको देखकर वहाँ एक हस्ती था उसने अपने उस बनकी (जहाँ वह हाथियोंके साथ रहा करता व पैदा हुआ था ) - याद से खाना पीना छोड़ दिया। उसकी यह हालत देखकर मुनिसुत महाराजने अवधिज्ञानसे उस हाथी के पूर्व भव जानकर समीप बैठे हुए मनुष्यों को हाथी पूर्व भव बतलाते हुए कहने लगे कि देखो यह निर्बुद्धि हाथीका जीव अपने पूर्व भवकी तो याद नहीं