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३६ ... दूसरा भाग,
(४) नंदमित्र और दत्तके पास भद्र क्षीरोद नामक एक बड़ा बलबान मदोन्मत्त हाथी था उसे भेंटमें देनेके लिये प्रतिनारायणने मंगाया तब नारायणने उसके बदलेमें प्रतिनारायणकी कन्या मांगी । वस दोनोंका युद्ध हुआ। उस समय नारायणदत्तके मामा विद्याधर केशरी विक्रमने सिंहवाहिनी गरुडवाहिनी दो विद्याएं दोनों भाइकोंको दी। और युद्ध में नारायण पर प्रति नारायणने जो चक्र चलाया था उसी चक्रके द्वारा नारायणने बलिन्द्रको मारा और वह नरक गया ।
(५) नारायण-दत्त सात रत्न तीन खंड पृथ्वी और सोलह हजार रानियोंके स्वामी हुए । बलदेव नंदमित्रको चार रत्न प्राप्त
हुए थे।
(६) दत्तने भोगविलासमें ही जीवन व्यतीत किया और मर कर नरक गया । बलदेव-नंदमित्रने सभूत नामक भगवान्के समीप तप धारण कर मोक्ष प्राप्त किया।
पाठ १८. भगवान्-मुनिसुव्रतनाथ ।
(वीसवें तीर्थंकर ) (१) भगवान् मल्लिनाथके मोक्ष जानेके चौपन लाख वर्ष बाद वीसवें तीर्थकर भगवान् मुनिसुव्रत उत्पन्न हुए। ये इस भवसे तीसरे भव पहिले भरतक्षेत्रके अंगदेशमें चंपापुरके राजा थे । नाम हरिवर्मा था । उस भवमें अनंतवीर्य स्वामीसे दीक्षा लेकर चौदवे स्वर्ग गये वहांसे चय कर मुनिसुव्रतनाथ नामक वीसवें तीर्थकर हुए।