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दुसरा भाग
करता और बनकी यादके कारण भोजन करना छोड़ दिया है। महाराजका सब कहना हाथीने सुन लिये और उसी समय उसे अपने पूर्व भवका स्मर्ण हो आया। फिर गृहस्थके व्रत उस हाथीने धारण किये। इधर महाराज मुनिसुव्रतने वैराग्यका चितवन किया। लौकांतिक देवोंने आकर आपकी स्तुति की। फिर आपने राजकुमार विजयको राज्य देकर वैशाख वदी दशमीको एक हजार राजाओं सहित दीक्षा धारण की । इन्द्रादि देवोंने तप कल्याणकका उत्सव किया । इसी समय मुनिसुव्रतनाथ स्वामीको मनःपर्ययज्ञानकी प्राप्ति हुई।
(८) आपका मुनि अवस्थाका सबसे पहिला आहार राजगृहीमें वृषभसेन राजाके घर हुआ। देवोंने राजाके घर पर पंचाश्चर्य किये।
— (९) ग्यारह महिने तप कर चैत्र वदी नौमीके दिन आपको केवलज्ञान प्राप्त हुआ । समवशरण सभाकी रचना इन्द्रादि देवोंने की और ज्ञान कल्याणकका उत्सव मनाया। (१०) आपकी सभाका चतुर्विध संघ इस भांति था।
१८ मल्लि आदि गणधर ५०० हादशांग ज्ञानके धारी २१००० शिक्षक मुनि १८०० अवधिज्ञानी १८०० केवलज्ञानी
२२०० विक्रिया रिद्धिके धारी .... १५०० मनःपर्यय ज्ञानके धारी
१२०० वादी मुनि
३००१८