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________________ पाचीन जैन इतिहास। १९ (८) एक दिन वनमें क्रोड़ाके लिये आप गये थे, वहांसे लोटते समय आपने एक मुनि देखे जिन्हें देखकर आपको वैराग्य हुआ । लौकांतिक देवोंने आकर आपकी स्तुति की। फिर पुत्रको राज्य देकर चक्रवर्ति भगवान् . कुंथुनाथने एक हजार राजाओं सहित वैशाख सुदी एकमके दिन दीक्षा धारण की । आपके मनःपर्यय ज्ञान प्राप्त हुआ । इन्द्रादि देवोंने तप कल्याणकका उत्सव मनाया । (९) दो दिन उपवास कर हस्तिनागपुरके राजा धर्ममित्रके यहां आपने आहार लिया । देवोंने रानाके यहां पंचाश्चर्य किये । (१०) सोलह वर्ष तक तप कर चैत्र सुदी तीनको भगवान् केवलज्ञानी हुए । इन्द्रादि देवोंने समवशरणकी रचना आदिसे ज्ञान कल्याणक उत्सव मनाया। (११) भगवान्की सभामें इस भांति चतुर्विध संघ था । ३९ स्वयंभू आदि गणधर ७०० पूर्व ज्ञानधारी ४३१५० शिक्षक मुनि २५०० अवधि ज्ञानी ३२०० केवल ज्ञानी। ५१०० विक्रिया धारी ३३०० मनःपर्यय ज्ञानधारी २०५० वादी मुनि ६००३५
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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