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दूसरा भाग।
पाठ १०.
भगवान कुंथुनाथ। (सत्रहवें तीर्थकर और छठवें चक्रवर्ति )
(१) भगवान् शांतिनाथके मोक्ष जानेके आधे पत्य बाद भगवान कुंथुनाथ हुए थे।
(२). हस्तनागपुरके कुरुवंशी राजा सुरसेनकी रानी कांताके गर्भ में भगवान् कुंथुनाथ श्रावण वदि दशमीको आये । माताने सोलह स्वप्न देखे । गर्भमें आने पर इन्द्रादि देवोंने गर्भकल्याणक उत्सव मनाया ! देवियां माताकी सेवामें रखी गईं । आपके गर्भ में आनेके छह मास पूर्वसे जन्म होने तक स्वर्गसे रत्न वर्षा होती थी।
(३) भगवान्का जन्म वैशाख सुदी प्रतिपदाको हुआ । आप भी तीन ज्ञान सहित उत्पन्न हुए थे । इन्द्रादिकोंने मेरु पर्वत पर लेजाना, अभिषेक व स्तुत करना आदि जन्म कल्याणक उत्सव किया।
(४) आपके साथ खेलनेको स्वर्गसे देव और पहिरने आदिको वस्त्राभूषण आते थे।
(५) आपकी आयु पंचानवे हजार वर्षकी थी । और शरीर तीस धनुष ऊंचा था।
(६) आपने तेवीस हजार सातसो पचास वर्ष तक कुमार अवस्थामें रह कर राज्य प्राप्त किया।
(७) आप इस युगके छठवें चक्रवर्ति हुए हैं । आपको भी चक्र रत्न आदि चौदह रत्न, नवनिधि, छह खंड पृथ्वीकी मालिकी आदि संपत्ति भरत आदि चक्रवर्तिके समान प्राप्त हुई थी।