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प्राचीन जैन इतिहास। १७ (१२) भगवान्का चतुर्विध संघ इस भांति था ।
३६ चक्रायुध आदि गणधर ८०० पूर्वज्ञानके धारी ४ १८०० शिक्षक मुनि ३००० अवधिज्ञानी ४००० केवलज्ञानी ६००० विक्रियारिदिके धारी ४००० मनःपर्ययज्ञानी २४०० वादी मुनि
६२०३६ ६०३०. हरिषेमा आदि आर्थिका २००००० हरिकीर्ति आदि श्रावक
४००००० अर्हदासी आदि श्रावका । (१३) आयुके एक मास बाकी रहने तक आपने आर्यखंडमें विहार किया । बाद सम्मेदशिखर पर पधार कर एक मासमें शेष कर्मोका नाश कर ज्येष्ठ वदी चतुर्दशीको मोक्ष पधारे । इन्द्रादि देवोंने निर्वाण कल्याणकका उत्सव किया ।
१-मुनि, भायिका, श्रावक, श्राविका इन चारोंका संघ (समूह) चतुर्विध संघ कहलाता है।