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प्राचीन जनै इतिहास | १६९
पदका अभिषेक हुआ । इनके आधीन सोलह हज़ार मुकुटबंध राजा थे। और सोलह हज़ार देश आधीन थे । ९८९० द्रोणमुख, २९००० पत्तन, ११००० कर्वट, १२००० मटंव और ८००० खेटक थे । ४८००००००० ग्राम थे । २८ द्वीप थे । ४२००००० हाथी, ९००००००० घोड़े और ४२००००००० पैदल सेना थी, ८००० गणबद्ध जातिके देव भी इनके आधीन थे । बलभद्रके ४ रत्न और नारायण लक्ष्मणके ७ रत्न थे । प्रत्येक रत्नके एक हजार २ देव रक्षक थे ।
एक दिन मनोहर वनमें दोनों भाइयोंने शिवगुप्त नामक जिनराजके दर्शन और उनकी पूजा की। और धर्मका स्वरूप पूछा । तथा श्रावकके व्रत लिये । लक्ष्मण नरकायु बंध कर चुका था । अतः उसे सम्यक्त्व नहीं हुआ । फिर दोनों भाई अयोध्याका राज्य भरत व शत्रुघ्नको दे आप बनारस आकर रहने लगे । और भोगविलासमें लीन हो गये। रामके विजयराम नामका पुत्र हुआ । और लक्ष्मणके पृथ्वीचंद्र नामक पुत्र हुआ । कुछ दिनों बाद लक्ष्मणने नागशय्या पर सोये हुए स्वप्न देखे कि मस्त हाथी द्वारा बड़का वृक्ष उखड़ा है । राहु द्वारा ग्रसित सूर्य रसातलमें चला गया है और चूनेसे पुते हुए महलका एक अंश गिर गया है । रामसे लक्ष्मणने उन स्वप्नोंको निवेदन किया । रामने पुरोहितसे पृछा । पुरोहितने कहा कि पहिलेका फल असाध्य रोगसे लक्ष्मणका रोगी होना है, दूसरेका फल भोगोपभोगकी वस्तुओंका नाश है और तीसरेका फल रामका तपोवनमें जाना है । यह फल सुन धीरवीर राम अधीर