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दूमरा भाग,
न हो दानादि करने लगे। राज्यमें जीव वध नहीं होनेकी घोषणा कराई । कुछ दिनों बाद लक्ष्मण असाध्य रोगी हुए और माघकृष्ण अमावशके दिन उनकी मृत्यु हुई । शोकसे संतप्त रामने ज्ञानवान् होनेके कारण अपने आपको संभाला और दाह किया । तथा लक्ष्मणके पुत्र पृथ्वीचन्द्रको राज्य दिया।
और उनके विजयराम आदि सात पुत्रोंने जब राज्यलक्ष्मी लेनेकी अनिच्छा प्रगट की तब आठवें पुत्र अनितरामको युवराज पद दे मिथिला देशका राज्य दिया । फिर अयोध्याके समीप सिद्धार्थ वनमें शिवगुप्त केवलीसे रामने हनुमान, सुग्रीव, विभीषण आदि पांचसौ राजाओंके साथ दीक्षा ली । सीता, पृथ्वी, सुंदरी आदि आठ रानियोंने भी श्रुतवती आर्थिकासे दीक्षा ली। पृथ्वी, सुंदर और अजितजयने श्रावकके व्रत लिये तथा राजधानीमें प्रवेश किया । साढ़े तीनसौ वर्षातक तप करने पर रामको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और छहसौ वर्ष केवलि अवस्थामें व्यतीत कर फाल्गुन शुक्ल १४ के दिन सम्मेदशिखरसे हनुमान आदिके साथ निर्वाण प्राप्त हुए । विभीषण सर्वार्थसिद्धि गये । और लक्ष्मण ४थे नरक गये । तथा सीता, पृथ्वी, सुंदरी आदि रानिया अच्युत स्वर्गमें देव हुई।