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दूसरा भाग ।
तीन खण्डों के स्वामी हुए । सीता उन्हें मिल गई । फिर लंकासे रवानह होकर राम लक्ष्मण मीठ नामक पर्वतपर ठहरे। वहां विद्याधरोंके राजाओंने दोनोंका १००८ कलशोंसे अभिषेक किया और लक्ष्मणने वहीं कोटिशिला उठाई । उससे प्रसन्न हो रामने सिंहनाद किया | वहां के रहनेवाले सुनंद नामक भाइयोंकी पूजा की और सानंद नामक तलवार दी । फिर दोनों भाई गंगा के किनारे २ गये समुद्र में मिलती है वहां डेरे डालकर बड़े द्वारसे लक्ष्मण समुद्र में गये और मगधदेवके निवास स्थानको निशाना बनाकर अपने नामका बाण छोड़ा । मगधने अपनेको बड़ा पुण्यवान समझ लक्ष्मण चक्रवर्तीकी स्तुति की तथा रत्नोंका हार मुकुट और कुंडल भेटमें दिये । फिर समुद्र के किनारे २ जाकर वैजयंत द्वारपर वरतनु नामक देवको वश किया । उसने कटक, अंगद, चूड़ामणि, हार, करधनी भेटमें दी । फिर दोनों भाई पश्चिमको ओर जाकर सिंधु नदीके बड़े द्वारसे समुद्रमें घुसे और प्रभास नामक देवको विजय किया । उसने सफेद छत्र तथा वहांकी उत्तमोत्तम वस्तुएँ और अन्य आभूषण दिये । इसके बाद सिंधु नदीके किनारे २ जाकर पश्चिम की ओरके म्लेच्छ खंड निवासियोंको तथा वहांकी उत्तमोत्तम वस्तुएं अपने आधीन कीं । विद्याघरोंको बश कर हाथी, घोड़े, शस्त्र, कन्याएं, रत्न आदि प्राप्त किये । वहांसे चलकर पूर्व खंडके म्लेच्छ देशोंके राजाओंको वश किया । इस प्रकार ४२ वर्षमें दिग्विजय कर अयोध्या में बहुतसे देव, विद्याधर राजा आदिके साथ प्रवेश किया । शुभ मुहूर्तमें सम्राट
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यक्षने उन दोनों
लक्ष्मणको भेटमें
और जहां गंगा