________________
प्राचीन जैन इतिहास । ११७ . लंकामें गया। और वहां वन उद्यान वगैरह नष्ट किये, व उनके रक्षकोंको मारा और लंकामें आग लगाई । फिर लौट कर युद्धार्थ अपनी सेना तैयार कर रखी । विभीषणसे रामने पूछा कि रावण युद्ध करने क्यों नहीं आया ? तब विभीषणने कहा कि वह बालिका परलोक गमन व सुग्रीव, हनुमानके अभिमानके समाचार सुन आदित्यपाद पर्वत पर आठ दिनोंका उपवास धारण कर राक्षस आदि विद्याएं सिद्ध करने बैठा है इन्द्रजीत उसका पुत्र उसका रक्षक है । इसमें विघ्न डालना चाहिए । इसलिये राम लक्ष्मणने प्रज्ञप्ति विद्या द्वारा बहुतसे विमान बना अपनी सेना लंकाके बाहर पहुंचाई । और कई विद्याधरोंको पर्वतपर लड़ने मेना उस समय पहिलेकी सिद्ध विद्याओंसे व देवताओंसे इन्द्रनीत और रावगने युद्ध करनेके लिये कहा; पर उन्होंने कहा कि आपका पुण्य क्षीण हो जानेसे हम युद्ध नहीं कर सकते । तब रावण स्वयं युद्ध के लिये तैयार हुआ । और सुकुंभ, निकुंभ, कुम्भकर्ण आदि भाई इन्द्र नीत, इंद्रकीर्ति, इन्द्रवर्मा आदि पुत्र, महामुख, अति काम, खरदूषण, धूम आदि विद्याधरोंके साथ युद्ध करने निकला । दोनों ओरसे कई दिनोंतक घनघोर युद्ध होता रहा । अन्तमें आकाशमें भी युद्ध हुआ । रावणका जब कोई वश नहीं चला तब उसने चक्र - चलाया । चक्र. लक्ष्मणके हार्थोमें आकर ठहर गया, लक्ष्म गने उसीसे रावणका सिर काटा । रावण मस्कर पहले नरक गया। रामने विभीषणको रावणका राज्य और सब संपदा दी तथा मंदोदरीको समझा बुझा दिया । राम लक्ष्मण