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दूसरा भाग रावणको स्वीकार कर पर सीताने मुंहतोड़ उत्तर दिया । अंतमें सीताने विधवाके समान रूप धारण कर प्रतिज्ञा की कि जब तक राम क्षेम कुशलके समाचार न सुन लुंगी तब तक न तो बोलूंगी और न खाऊंगी। वह संसारकी असारताका चितवन करती हुई वहां अपना समय व्यतीत करने लगी । लंकामें रावणके लिये अनिष्ट कारक उत्पात होने लगे । उसकी आयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। रावणको उसका फल नहीं मालूम था अतः वह बहुत प्रसन्न हुआ ! मंत्रियोंने उसके इस परस्त्री हरण रूप कृत्यका बहुत विरोध किया, पर वह नहीं माना। उसने कहा देखो सीता के आते ही मेरे यहां चक्ररत्न उत्पन्न हुआ यही शुभ लक्षण है । उधर राम हरिणके पीछे २ बनमें बहुत दूर चले गये थे । रात्रि हो गई थी। रामके शिविर में सीता और रामको न देख उनके कर्मचारी बहुत घबड़ाये । सुबह होते ही जब राम आये तब उन्होंने सीताको न देख कर्मचारियोंसे पूछा । उन लोगोंने कहा हमें नहीं मालूम सीता कहां है ? यह सुन राम मूर्छित हो गये । सीता को बहुत ढूंढा पर पता नहीं चला । उसका एक ओढ़ने का कपड़ा मिला उसे लोगोंने रामको लाकर दिया । राम सब बात समझ गये और लक्ष्मणके साथ चिंता करने लगे । इतने ही में दशरथ महाराजका दूत रामके पास आया । उसने क कि दशरथको स्वप्न आया है कि चन्द्रकी स्त्री रोहिणीको राहु हर ले गया है और चंद्रमा अकेला रह गया है। इसका फल पूछने परनिमित्तज्ञानियोंने कहा है कि सीताको रावण हर लेगया है। और राम अकेले रह गये हैं, यह समाचार दशरथने भेजा है
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