________________
प्राचीन जैन इतिहास |
१६३
और यह पत्र दिया है। रामने पत्रको मस्तकसे लगा कर पढ़ा । उसमें लिखा था कि यहांसे दक्षिणकी ओर समुद्र में छप्पन महा द्वीप हैं वे चक्रवर्तीकी आज्ञामें तो सब रहते हैं और नारायणकी आज्ञामें आधे रहते हैं इनमें लंका महा द्वीप है जो कि त्रिकूटाचल पर्वतसे सुशोभित है । उसमें आजकल रावण राज कर रहा है । वह दुष्ट राजा है । उसने सीताका हरण किया है । और अपने नगर में ले जाकर रखा है । इस लिये जब तक उसके छुड़ा नेका उद्योग हम करें तब तक वह अपने शरीरकी रक्षा करती रहे, यह समाचार सीताके पास भेज देना उचित है । रामका इस पत्रके पढ़ने से शोक तो दूर हो गया; परन्तु रावण पर क्रोध आया । इसी समय दो विद्याधर रामसे मिलने आये उनमें से एक अपना परिचय इस प्रकार दिया कि विजयार्द्धकी दक्षिण श्रेणी में किलकिल नामक नगर के राजा वलीन्द्र थे । उनकी रानीका नाम प्रियंगु सुंदरी था । उनके दो पुत्र वालि और सुग्रीव । जब पिताने दीक्षा ली तब वालिको राजा और मुझे सुग्रीवको युवराज बनाया ! परन्तु कुछ काल बाद मेरे बड़े भाईने मुझसे मेरा पद छीन घरसे निकाल दिया । और मेरे साथमें आये हुए इन युवकका नाम अतिवेग है । यह विद्युत्कांता नगरके राजा प्रभजन विद्याधरकी रानी अंजनाका पुत्र है । यह तीनों तरहकी विद्याएं जानता है । अखंड पराक्रमी है । एक वार विद्याधरोंके कुमार अपनी ८ विद्याओंकी शक्तियोंकी परीक्षा करने विजयार्द्ध पर्वतके शिखर पर गये । वहां इनने अपने बायें पदसे सूर्यमंडलको विद्याके जोर से ठोकर मारी | फिर अपना शरीर त्रसरेणुके समान बना लिया । इससे
=