________________
प्राचीन जैन इतिहाम। १११ सन्तोष रखनेका उपदेश दिया कि सतीत्व ही स्त्री पर्यायमें एक अमूल्य वस्तु है । सती स्त्रियां अपने सतीत्वके प्रतापसे सत्व हरण करनेवालेको भस्म तक कर सकती हैं। उसकी इन बातोंसे सीताका अहोल पित्त समझ सूर्पणखा वहांसे गई । और रावणसे सब हाल कहा । तथा वहांके भोग, बल आदिकी भी प्रशंसा की। तब रावणने कहा तूं चतुर नहीं है । तुझे स्त्रीका स्वभाव नहीं मालूम । ऐसा कह पुष्पक विमान द्वारा मारीच मंत्रीके साथ वह स्वयं भाया । चित्रकूट बनमें आकर रावणकी आज्ञासे मारीच ने मणियोंसे बने हुए हरिणके बच्चे का रूप बा लिया । और सीताके सामनेसे निकला । सीताने रामसे कहा कि देखिए कैसा प्यारा और आश्चर्य जनक ह रण है ? रामने भी आश्चर्य किया
और उसे पकड़ने चलें । वह कभी भागता कभी थम जाता कभी छलांग मारता था। इस तरह वह रामको बहुत दूर ले गया । राम कहते थे कि यह मायामई हरिण है इसके पीछे जाना निरर्थक है । तो भी पकड़नेको जाते हो थे । अंतमें वह आकाशमें उड़ गया राम देखते ही रह गये । इधर रावण राम का रूप धारण कर आया और सीतासे कहा कि चलो घर चलें, शामका समय हो गया है । पुष्पक विमानको पालकी बनालिया और उसमें सीताको विठाकर लंका लाया । और एक वनमें रख कर अपना रूप प्रकट कर दिया तथा सीताको उसके लानेका कारण बतलाया । सीता यह देखकर मूर्छित हो गई । रावणने उसे आकाश गामिनी विद्या नष्ट हो जानेके भयसे अभी तक स्पर्श नहीं किया था । दृतियोंको मेन कर उसकी मूर्छा दूर कराई । दूतियोंने बहुत समझाया कि तू