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प्राचीन जैन इतिहास। १५१
पाठ ३७.
लक्ष्मणके ज्येष्ठ पुत्र । एक समय काञ्चन नगरके राजा काञ्चनरथने अग्नी दो पुत्रियोंका स्वयंवर किया था। उन पुत्रियोंने रामचन्द्र के कुमारों के गले में वरमाला डाली । इस पर लक्ष्मणके ज्येष्ठ पुत्रोंके सिवाय अन्य पुत्र बहुत अप्रसन्न हुए। और सीताके पुत्रोंसे युद्ध करनेको उद्यत हो गये। तब उन्हें लक्ष्मणके ज्येष्ठ आठ पुत्रोंने बहुत कुछ समझा कर शन्त किग । और जगत्की यह स्थिति देख मातापिताकी आज्ञासे आठों पुत्रोंने दीक्षा धारण की । इनके दीक्षा गुरु महाबल नामक मुनिराज थे। कर्मोका क्षय कर लक्ष्मणके *आठों पुत्र मोक्ष गये।
पाठ ३८ राम लक्ष्मणके अंतिम दिन (८१) एक बार स्वर्गकी सभामें सौधर्म इन्द्र कह रहा था कि अबकी बार यदि मैं यहांसे चलकर मनुष्य योनि प्राप्त करूं तो अवश्य अपने कल्याणका प्रयत्न करूं। एक देवने कहा कि यह सब कहनेकी वाते हैं। जब मनुष्य योनि प्राप्त हो जाती है तब कुछ याद नहीं रहता । देखिये ! जब रामचंद्र यहां थे तब अपने कल्याणार्थ मनुष्य होनेकी कितनी तीव्र इच्छा प्रगट करते थे । परन्तु अब सब भूल गये । इन्द्रने उत्तर दिया कि राम भूले नहीं हैं किंतु उन्हें लक्ष्मणके साथ इतना भारी स्नेह है कि वे