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प्राचीन जैन इतिहास | १४९ रामको इस समवशरण में ही यह विदित हुआ कि मैं इसी भवमें मोक्ष जाऊंगा ।
(९) राम, लक्ष्मण एक वार सीताकी वन्दनार्थ गये । सीता तपश्चर्या के कारण कुश हो रही थी । सीताकी इस अवस्थाको और पूर्व वैभवकी अवस्थाको देखकर राम, लक्ष्मणने बहुत पश्चाताप किया। फिर दोनोंने प्रणाम किया और घर लौट आये । सीताने घोर तप किया; जिसके फलसे स्त्रीलिङ्ग छेदकर अच्यु-तेन्द्र हुई ।
पाठ ३५
सकलभूषण |
नाम
ये विजयार्ध पर्वतकी उत्तर श्रेणीके विद्याधर राजा | इनके पिताका नाम सिंहविक्रम और माताका श्री था। इनके ८०० रानियां थीं। पटरानीका नाम किरणमण्डला था, जो चित्रकला में निपुण थी । अन्य रानियोंके कहने से किरणमण्डलाने अपने मामा के पुत्र हेमसिखका चित्र दीवाल पर बनाया । चित्रको देख सकलभूषणको किरणमण्डलाके चरित्र में संदेह हुआ । परन्तु जब अन्य रानियोंने कहा कि यह हमने आग्रहसे बनवाया था तब सन्देह मिटा । एक दिन फिर कहीं रात्रिको किरणमण्डलाके मुख से स्वप्न में अचानक हेमसिखका नाम निकल गया । अब तो सकलभूषणका संदेह फिर ताजा हो गया । इस पर उन्होंने वैराग्य धारण कर मुनिव्रत ले लिये। किरणमण्डला भी आर्यिका हो गई । परन्तु उसके हृदय में पति द्वारा लगे हुए