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प्राचीन जैन इतिहास |
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पाठ ३१
राम लक्ष्मणका अयोध्या में आगमन, भरतका दीक्षा ग्रहण, राम लक्ष्मणका राज्याभिषेक, वैभव और दिग्विजय तथा शत्रुघ्नका मथुरा विजय करना ।
(१) रामचन्द्र और लक्ष्मणकी माता अपने पुत्रोंके पियोगका - बहुत दुःख करने लगीं । प्रतिदिन क्षीण होतीं जाती थीं और प्रायः सदा अश्रुपात करती रहतीं थीं । नारदने आकर उन्हें - समझाया और फिर राम, लक्ष्मणके पास आकर उनकी माताके समाचार कहे । तब राम लक्ष्मण अयोध्या जानेको उद्यत हुए । परन्तु बिभीषणने उन्हें हठ करके सोलह दिनके लिये और रोका । और उनकी कुशलता, आनेकी तिथिकी सूचना अयोध्या भिजवा दी ।
(२) सोलह दिनोंके भीतर ही रामके स्वागतार्थ बहुत कुछ तैयारियां अयोध्या में हो गई। नवीन जिन मंदिर बन गये । कई महल बनवाये गये ।
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(३) छः वर्ष लङ्का में व्यतीतकर राम, लक्ष्मण अयोध्या में आये | आपके साथ हनुमान, भामण्डल, सुग्रीव आदि भी थे । माताओंको रानियों सहित दोनों भ्राताओंने प्रणाम किया । भरतसे मिले | अयोध्या में रत्नदृष्टि हुई जिसके कारण निर्धन, धनी हो गये । (४) रामके यहां इस प्रकार विभूति थीः - रथ और हाथी बयालीस लाख, घोड़े नौ करोड़, पांयदलसेना बयालीस करोड़,