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दूसरा भाग।
पाठ ३० देशभूषण-कुलभूषण । (१) ये दोनों भ्राता थे । (२) ये सिद्धार्थ नगरके राजा क्षेमन्धर, रानी विमलाके पुत्र थे । (३) इनके पिताने इन्हें सागरघोष नामक विद्वान्के सिपुर्द शिक्षाके लिये किया । शिक्षा समाप्त कर जब ये घर पर आगये तब पिताने इनके विवाहके लिये योग्य कन्याएँ बुलाई । ये दोनों भ्राता उन कन्याओंको देखने जाने लगे । झरोखेमें इनकी बहिन कमोत्सवा बैठो थी। वह परम सुंदरी थी। इसको देख कर दोनों भ्राता उस पर मुग्ध हो गये । और यहां तक दोनोंके मनमें विचार हुआ कि जिसके साथ इसका विवाह न हो वही दूसरेके प्राण ले । परन्तु उसी समय दूतने कहा कि राजा क्षेमंधरकी जय हो जिनके दो पुत्र और झरोखेमें बैठी हुई कमलोत्सवा आदि पुत्रो हैं। जब इन्हें भान हुआ कि हाय ! हमारा दुष्ट मन बहिन पर आसक्त हुआ था। तब इन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ । (४) वैराग्य धारण करने पर इन्हें आकाशगामिनी ऋद्धि प्राप्त हुई । घोर तप और पूर्व जन्मके शत्रु दैत्यके द्वारा किये गये उपसर्ग सहन करने के बाद इन्हें कैवल्य ज्ञान हुआ । (५) भगवान् मुनिसुव्रतनाथ-स्वामीके बाद एक अनंतवीर्य के वली हुए थे। उनके बाद इन दोनोंको कैवल्य-ज्ञान हुआ । (६) इनका पिता क्षेमंबर भी मर कर गहड़ेन्द्र हुआ।
और वह भी इनके समवशरण में आया। (७) यहांसे दोनों केवली विहार कर गये और स्थान २ पर उपदेश दिया । अंतमें इसी पर्वतसे निर्वाण की प्राप्ति की।