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दूसरा भाग ।
पिछले पहर ५६ हजार मुनियोंके सङ्घ सहित अनन्तवीर्य आचार्य लङ्कामें आये | और वहीं भगवान् अनन्तवीर्यको कैवल्य ज्ञान उत्पन्न हुआ ।
(28) रामचन्द्र के साथ वानरवंशी और राक्षसवंशी वन्दनाके लिये गये | कुम्मकरण, इन्द्रजीत, मेघनादने दीक्षा धारण की। मन्दोदरीने शशिक आर्थिक से दीक्षा ली। जिस दिन मन्दोदरी दीक्षित हुई, उस दिन अड़तालीस हज़ार स्त्रियोंने आर्यिकाके व्रत लिये थे ।
(४५) केवलीकी वन्दना करनेके पश्चात् राम, लक्ष्मणने अपने साथियों सहित लङ्कामें प्रवेश किया । सीतासे मिले । रामके साथी हनुमान, सुग्रीव, आदिने सीताको भेंटें दीं । लक्ष्मण पांवों पड़े । फिर परम हर्षके साथ रावणके महलों में जो शान्तिनाथका मन्दिर था उसकी वन्दनाको गये । वहाँ विभीषणने अपने पितामह सुमाली और माल्यवान्को तथा पिता रत्नश्रवाको रावणका शोक न करनेके लिये समझाया । और अपने महलों में जा अपनी विदग्धा नामक पट्टरानीको राम, लक्ष्मणके पास भेजकर भोजनका निमन्त्रण दिया। पीछे विभीषण भी निमन्त्रण देने को आया । राम, लक्ष्मण विभीषणकी पट्टरानी के साथ ही विभीषणके महलोंमें पधारे और वहां भोजन किया । विभीषणने खूब सत्कार किया ।
(४६)राम, लक्ष्मणके राज्याभिषेककी तैयारियां हुईं । पहिले तो इन दोनों भाइयोंने यह कहकर अभिषेक कराना उचित