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________________ प्रार्चन जैन इतिहाम। १२७ शकुन हुए। परन्तु एक की भी पर्वाह न कर युद्धक्षेत्रमें आ डटा। दोनों ओरसे घनघोर युद्ध हुआ। दोनों ओरके योद्धाओंने घनघोर युद्ध किया । इनमें कई योद्धा अणुव्रतोंके धारी भी थे। बहुत घनघोर युद्ध होनेके बाद रावणने लक्ष्मणपर चक्र चलाया। रामकी ओरके कई योहा उस चक्रसे लक्ष्मणकी रक्षा करनेको तैयार हुए । परन्तु वह चक्र स्वयं ही लक्ष्मणकी तीन प्रदक्षिणा देकर लक्ष्मणके हाथोंमें आ गया। और फिर लक्ष्मणने उस चक्रको रावणपर चलाया सो रावण का उरूस्थल छेदकर रावणको प्राण रहित किया। (१२) रावणकी पराजय हुई । सेनामें हाहाकार मच गया। बिभीषण आदि शोक करने लगे । भ्रातृप्रेमके आवेशमें बिभीषण आत्मघात करनेको तैयार हुए । परन्तु रामादिने समझाकर उन्हें शांत किया । फिर राम, लक्ष्मण रावणके महलों में गये और रावणकी शोकाकुल रानियोंको समझाकर पद्म सरोवरके तट पर सुगंधित वस्तुओंसे रावण का शवदाह किया । (४३) रामने रावणके कुटुम्बियों तथा सम्बन्धियोंको छोड़नेकी आज्ञा दी। कई लोगोंने गमको ऐसा न करनेके लिये समझाया । क्योंकि उहें भ्रम था कि छूट जानेपर शायद फिर युद्ध हो । परन्तु निर्भय रामने न मानकर कुम्भकरण, इद्रजीत, मेघनाद, मय आदिको छोड़ दिया । रावणके मरणसे इन लोगोंके परिणाम वीतरागतामय हो गये थे । अतएव इन्होंने वैराग्य धार. णका विचार किया ! रामने राज्यादि सम्पदा लेनेके लिये इन लोगों को बहुत कुछ समझाया; पर इन्होंने नहीं माना । उप्ती दिन
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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