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दूसरा भाग
सुनी । और कहा कि
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मुझसे प्रेम कर । परन्तु सीताने एक न यदि तेरे हाथसे रामका मरण हो तो अन्त समय उनसे मेरा सन्देश इस प्रकार कहना कि :- "सीता, तुम्हारे वियोग से बहुत दुःखी है । तुम्हारे दर्शनोंकी अभिलाषासे उसके प्राण टिक रहे हैं । " इस प्रकार सन्देश कह कर सीता मूर्छित हो गई । उस दशाको देख कर रावणका हृदय पिघला और वह विचार करने लगा कि मैंने अच्छा नहीं किया । विभीषणका उपदेश भी नहीं 1 माना । अब यदि सीताको देता हूं तो मेरी निर्बलता सिद्ध होती મૈં है । अब रावण के विचार बदले परन्तु बदनामीका भय लगा हुआ था । अतएव उसने निश्चय किया कि राम लक्ष्मणको युद्धमें जीत कर सीताको वापिस कर दूंगा तो मेरी शोभा होगी । जब वह लौट कर घर आया तत्र रावण की स्त्रियोंने फिर अङ्गदकी दुष्टताका विवेचन किया। अबकी बार रावणको को आगया और वह फिर जोर-शोर से युद्ध करनेके लिये उद्यत हुआ । जब वह दरबार में गया और वहाँ अपने भाई कुम्भकरण और पुत्र इन्द्रजीतको न देखा तो उसके क्रोधमें आहुति पड़ी । दरबारसे आयुधशाला में गया। उसके साथ उसकी पट्टरानी मन्दोदरी थी । मन्दोदरी पर भी छत्र, चंवर आदि उपकरण लगाये जाते थे । आयुधशाला में जाते समय अपशकुन हुए । मन्दोदरीने समझाया । अपनी प्रशंसा और सोताकी अप्रशंसा कर रामका भय बतलाया परन्तु रावणने एक न मानी । आयुवशालाका निरीक्षण कर महलोंमें आ गया । और दूसरे दिन कई शस्त्रविद्याओंका जानकार, धीर वीर रावण युद्ध करने चला ! मार्गमें अनेक अप