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________________ ११६ दूसरा भाग । यहां भोजन करने चले गये फिर वहांसे आकर सीतासे कहा कि आप मेरे कन्धे पर बैठो, मैं आपको रामके पास ले चलूंगा । (३०) सीताने कहा कि बिना पतिकी आज्ञाके मैं यहां से नहीं जा सकती और तुम शीघ्र जाओ । सीताने अपनी चूडामणी हनुमानको दी । इधर रावणके पास जाकर मन्दोदरीने हनुमानके समाचार कहे और कहा कि उसने हमारा अपमान किया है । तब रावण ने हनुमान के पकड़नेको सेना भेजी । वह सेना स-शस्त्र थी, परन्तु हनुमान के पास कोई शस्त्र नहीं था । तौमी हाथसे,. पैरसे, कन्धे से, मुक्कों से, पत्थरोंसे झाड़ोंको उखाड़कर उनसे सेना - को तित्तर वित्तरकर दिया । बड़े २ मकान धराशायी कर डाले / बजारको रणक्षेत्र बना दिया । यह हालत देख मेघनाद इंद्रजीत हनुमान से युद्ध करने आये । बड़ी कठिनतासे हनुमान नागपाश में बांधे गये । बंध जाने पर रावणके पास लाये गये । उस समय रावणके पास हनुमान के विरुद्ध लोग प्रार्थना कर रहे थे । हनुमानके आने पर रावणने हनुमान से बहुत कुवचन कहे । परन्तु धीरवीर निर्भय हनुमान ने भी उसका प्रत्युत्तर दिया । इस पर क्रोधित हो रावणने आज्ञा दी कि इसे बांध कर शहर में घुमाओ । जगह २ इसकी निन्दा करो । लड़कोंसे धूल डलवाओ। कुत्तोंको भुँकाओ । सेवकोंने इसी प्रकार करना प्रारम्भ किया । परन्तु बलवान् हनुमान बन्धन तोड़ आकाशमें उड़ गया । और फिर उत्पात करना प्रारम्भ किये । रावणके कई महल धराशायी कर डाले । लङ्काका कोट नष्ट भ्रष्ट कर दिया । और फिर अपनी सेना में आकर वहां किष्किन्धापुर आया । सुग्रीव, राम और लक्ष्मणसे लङ्काके सम्पूर्ण
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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