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प्राचीन जैन इतिहास | ११५
-गया; जहां कि सीताको रावणने रख छोड़ा था। सीताको दूरसे देखते ही उसके परमशीलके कारण हनुमानके हृदय में बड़ी भक्ति उत्पन्न हुई । उस समय हनुमान अपना रूप बदल कर सीताके पास गये और रामचंद्रकी मुद्रिका सीताके पास डाली । सीता उसे देख परमप्रसन्न हुई । उसे प्रसन्न होते देख रावणने सीताके समीप जो दूतियां रक्खी थीं वे दौड़ी हुई रावणके पास गई और लगीं कि आज सीता प्रसन्नदिल हो रही है । इसपर रावण भी - बहुत प्रसन्न हुआ और उसने मन्दोदरी आदि अपनी रानियों को Ararat rare प्रसन्न करनेके लिये भेजा । उनने आकर रावकी प्रशंसा की और उसपर आसक्त होनेके लिये कहा । इसपर हनुमान बहुत क्रोधित हुआ । और इन्हें खूब फटकारा । मन्दोदरीसे कहा कि तू शीलवान् होकर अपने पतिको कुमार्गसे तो नहीं रोकती, उलटी एक पतिव्रताका शीलभङ्ग करना चाहती है । तब मन्दोदरीने रावणकी बहुत प्रशंसाकर राम लक्ष्मणकी निन्दा की । इसपर क्रोधित हो सोताने कहा कि मालूम होता है कि रावणका पतन शीत्र होनेवाला है । सीताके मुख से यह निकलते ही रावण-. की रानियां सीताको मारने दौड़ीं। हनुमानने बचाया । तब वे रावण के पास चलीं गईं । हनुमानने सोतासे भोजन की प्रार्थना की । सीताने प्रतिज्ञा भी यही कर रक्खी थी कि जबतक रामके समाचार नहीं आवेंगे, तबतक मैं भोजन नहीं करूँगी ! अब हनुमानकी प्रार्थनापर सीताने भोजन करना स्वीकार किया वासीको भोजन बनाने की आज्ञा देकर हनुमान विभीषण के
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