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________________ दूसरा भाग। (२८) इधर रावणके मन्त्रियोंने रावणकी यह दशा देख नगरको शत्रुओंसे बचानेके लिये उसके आसपास कई प्रकारके मायामयी यन्त्र बनाये । एक बड़ा भारी कोट बनाकर द्वार पर एक पुतली बनाई । उसके आसपास सर्प बनाये जो सन्मुख आनेवालोंको निगल जावें; फूत्कार करें और इस प्रकारका विष छोड़ें जिससे अन्धकार फैल जावे । कहा गया है कि यह विद्या बलसे बनाये गये थे। जब हनुमान लङ्काके समीप आये तब इन मन्त्रोंके द्वारा उनके विमानकी गति रुकी। इस पर उन्होंने बख्तर पहिन कर उस पुतलीके मुँहमें प्रवेश किया । और उसका उदर चीर दिया तथा गदा प्रहारसे कोटका पतन किया । जिप्त समय यह तिलिस्म टूटा बड़ी भारी ध्वनि हुई। तिलिस्नके टूटने ही उस कोटका रक्षक वज्रमुख, हनुमानसे युद्ध करनेको उद्यत हुआ। वीर हनुमानने उसे भी मारा। फिर उसकी कन्या लङ्कासुन्दरी हनुमानसे युद्ध करने लगी । यद्यपि वह युद्ध करती थी परन्तु मन ही मन हनुमान पर आसक्त थी । अन्तमें उसने अपने प्रेमके समाचार एक पत्रमें लिख और उस पत्रको बाणमें बांध हनुमानको मारा । हनुमानने उस पत्रको पढ़ कर युद्ध बन्द किया। फिर दोनोंका परस्पर संयोग हुआ । ___(२९) अपनी सेनाको लङ्कासुन्दरीके पास छोड़ हनुमानने थोड़ेसे सेवकों सहित लङ्कामें प्रवेश किया। पहिले विभीषणके पास गया और रावण को समझानेके लिये कहा; परन्तु विभीषणने कहा कि मेरा कहना नहीं मानता। इस समय सीताको ग्यारह दिन बिना जल, भो ननके हो गये थे । फिर हनुमान प्रमद वनमें
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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