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प्राचीन जैन इतिहाम। १११ बड़ी चिन्ता हुई । वह हनुमानके पास गया। हनुमान उसको रक्षाके लिये आये । परन्तु जब दोनोंको एक समान देखा तब यह समझकर कि कहीं झण्डे के धोखेमें सच्चा न मारा जाय; विना कुछ किये पीछे लौट गये । सुग्रीव उस समय तक रामके विरुद्ध था । वह रामचंद्रको कामी समझता था। इसलिये कि कहीं तीसरी आफत न आ जाय, वह रामके पास नहीं जाता था । परन्तु अंतमें रामके पास जाना निश्चय किया। विराधितसे मित्रता कर रामसे मिला । राम और सुग्रीवने पंचोंके सन्मुख प्रतिज्ञा की कि हम दोनों अपनी मित्रता आनन्म निबाहेंगे। सुग्रीव ने यह भी प्रण लिया कि मेरी विपत्ति दूर होनाने पर मैं सीताका पता ७ दिन में लगा दूंगा ! राम सुग्रीवकी राजधानी किहि किन्धा पर गये। वहां उनकी आज्ञानुसार दोनों सुग्रीवोंमें परस्पर युद्ध हुआ। असली सुग्रीब पहिले हार गया। फिर रामचंद्र स्वयं सुग्रीवकी ओरसे नकली सुग्रीवसे लड़े । गमको देखते ही नकली सुग्रीवके शरीरसे बताली विद्या चली गई। और असली साहसगतिका रूप निकल आया । तब उसके ओरकी सेना भी उससे बिछुड़ मई । रामने उसे मारा । और सुग्रीवने अपना राज्य और अपनी स्त्री पाई । फिर अपनी तेरह कन्याओंका रामके साथ पाणिग्रहण किया । इन कन्याओंने पहिलेसे ही प्रतिज्ञा कर ली थी कि हम विद्याधरोंके साथ विवाह न करेंगी। .
(२४) सुग्रीवकी जब विपत्ति दूर हो गई तब उसने ७ दिनमें सीता ढूंढ़नेकी जो प्रतिज्ञा की थी उसे भूल गया । लक्ष्मण इस बात पर बहुत क्रोधित हुआ। तब सुग्रीवने अपने