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दूसरा भाग।
(१२) राम सीताको स्थान पर न देख विह्वल हो ढूँढने लगे । और जब सीता नहीं मिली तब राम और अधिक अधीर हुए । वे वृक्ष, नदी आदिसे सीताका पता पूंछते थे। इतनेमें लक्ष्मण भी खरदूषण और दूषणको मार युद्ध में विजय प्राप्तकर पाताल लङ्काका राज्य अपनी ओरसे विराधितको दे रामके पास आये । जब सीता-हरणका सम्बाद सुना तब लक्ष्मणको भी बहुत दुःख हुआ । उन्होंने उसी समय विराधितको सीताका पता लगानेकी आज्ञा दी । परन्तु सीताका पता नहीं लगा । तब विराधितने कहा कि आप पाताल लङ्का पधारे वहांसे पता लगावें । शायद खरदूषणका साला रावण तथा उसके पुत्र खरदूषणका बदला लेनेके लिये यहां युद्ध करनेको आगे । अतः पाताल लंका ही चलें । तब राम लक्ष्मण पाताल लंका गये । वहां खरदूषणके पुत्र सुन्दरने युद्ध किया । लक्ष्मणने उसे भी जीता। तब वह अपनी माता सहित रावणके पास चला गया । राम, लक्ष्मण पाताल लंकामें रहने लगे।
(२३) सुग्रीवकी स्त्री सुतारा पर साहसगति नामक विद्याघर पहिलेसे ही आसक्त था। परन्तु सुताराके पिताने उसे न देकर सुग्रीवको दी थी । एक दिन सुग्रीव कहीं अन्यत्र गया हुआ था कि मौका पाकर साहसगतिने सुग्रोवका रूप धारण कर लिया
और सुग्रीवके घर आ गया । इधर असली सुग्रीव भी आ गया । अब दोनों में परस्पर झगड़ा चला । एक दूसरेको नकली बताने लगे। तब सुग्रीवका पुत्र महलों पर पहरा देने लगा। वह दोमेसे एकको भी नहीं आने देता था। असली सुपीकको