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________________ १९० दूसरा भाग। (१२) राम सीताको स्थान पर न देख विह्वल हो ढूँढने लगे । और जब सीता नहीं मिली तब राम और अधिक अधीर हुए । वे वृक्ष, नदी आदिसे सीताका पता पूंछते थे। इतनेमें लक्ष्मण भी खरदूषण और दूषणको मार युद्ध में विजय प्राप्तकर पाताल लङ्काका राज्य अपनी ओरसे विराधितको दे रामके पास आये । जब सीता-हरणका सम्बाद सुना तब लक्ष्मणको भी बहुत दुःख हुआ । उन्होंने उसी समय विराधितको सीताका पता लगानेकी आज्ञा दी । परन्तु सीताका पता नहीं लगा । तब विराधितने कहा कि आप पाताल लङ्का पधारे वहांसे पता लगावें । शायद खरदूषणका साला रावण तथा उसके पुत्र खरदूषणका बदला लेनेके लिये यहां युद्ध करनेको आगे । अतः पाताल लंका ही चलें । तब राम लक्ष्मण पाताल लंका गये । वहां खरदूषणके पुत्र सुन्दरने युद्ध किया । लक्ष्मणने उसे भी जीता। तब वह अपनी माता सहित रावणके पास चला गया । राम, लक्ष्मण पाताल लंकामें रहने लगे। (२३) सुग्रीवकी स्त्री सुतारा पर साहसगति नामक विद्याघर पहिलेसे ही आसक्त था। परन्तु सुताराके पिताने उसे न देकर सुग्रीवको दी थी । एक दिन सुग्रीव कहीं अन्यत्र गया हुआ था कि मौका पाकर साहसगतिने सुग्रोवका रूप धारण कर लिया और सुग्रीवके घर आ गया । इधर असली सुग्रीव भी आ गया । अब दोनों में परस्पर झगड़ा चला । एक दूसरेको नकली बताने लगे। तब सुग्रीवका पुत्र महलों पर पहरा देने लगा। वह दोमेसे एकको भी नहीं आने देता था। असली सुपीकको
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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