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प्राचीन जैन इतिहास | १०९
लक्ष्मणने पुत्रको मारकर सूर्यहास्य खड्ग हो लेलिया तथा मेरे जाने पर मुझसे भी कुचेष्टाएँ कीं । वस खरदूषणने युद्ध की तैयारी की और आप युद्धके लिये गया । तथा रावण के पास भी सहायतार्थ समाचार भेजे ।
(२१) इससे युद्ध करनेको रामचंद्र जाने लगे । परन्तु लक्ष्मणने कहा कि आप यहीं पर रहे । सीताकी रक्षा करें। मैं जाता हूं। आवश्यकता पड़ने पर मैं सिंहनाद करूंगा तब आप रे । क्ष्द्ध करने लगे । लक्ष्मणसे खरदूषण के शत्रु चंद्रोदयका पुत्र विराधित आ मिला। उधर रावण खरदुषणकी सहायतार्थ आ रहा था । मार्ग में सीताको देखकर वह आसक्त हो गया । तब उसने अवलोकिनी विद्याके द्वारा - राम, लक्ष्मणने परस्पर में जो सिंहनादका संकेत किया था, उसे जानकर सिंहनाद किया । राम भ्रातापर शत्रुका अधिक दबाव सभझ सीताको पुष्प वाटिका में छिपा और जटायूको पास में रख युद्धक्षेत्रमें गये । रावणने मौका पाकर सीताको विमान में रक्खा । रावणसे जटायू युद्ध करने लगा ! परन्तु बलवान् रावणके आगे उस पक्षीका बल कहाँ तक चल सकता था । रावणकी थप्पड़ से वह अधमरा हो पृथ्वीपर आ गिरा । उधर राम जब लक्ष्मणके पास पहुँचे, तब लक्ष्मणने कहा- आप
आये ? रामने उत्तर दिया कि तुमने तो सिंहनाद किया था इससे आया हूं फिर लक्ष्मणने उत्तर दिया कि मैंने सिंहनाद नहीं किया । यह किसीने धोखा दिया है । आप शीघ्र स्थानपर लौट जाय मैं भी शत्रुको जीतकर आता हूँ । राम तुरन्त ही लौट आये ।