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दूमरा भाग।
सेवकोंको भेजा और स्वयं भी गया । मार्गमें रत्नजटी विद्याधरके द्वारा सुग्रीवको सीताका पता लग गया। रत्ननटीको लेकर सुग्रीक रामके.पास आया ।
(२४) रत्नजटी, भटमण्डल (सीताके भाई )का सेवक विद्याधर था। जिस समय रावण सीताका हरण कर लिये जा रहा था उस समय रत्नजटी भी उसी मार्गसे आता था रत्ननटीने जब सीताका विलाप सुना तब वह रावणके समीप आया और रावणसे बहुत कहा-सुनी की । इस पर रावणने उसकी विद्याएँ हरण कर ली । तब वह विद्याधरसे भूमिगोचरी हो नीचे गिरा और कम्पू पर्वत पर रहने लगा।
(२६) राम सब वृत्तान्त पूछकर विचार करने लगे कि आगे क्या करना चाहिये । कई विद्याधरोंने राम, लक्ष्मणको समझाया कि रावण महा बलवान् है। उससे युद्ध करना उचित नहीं । अब सीताकी आशा छोड़कर हमें अपने अन्य कार्योसे लगना चाहिये । आप हमारे स्वामी बन कर रहो। हम आपके साथ विद्याधरोंकी सुन्दर २ कन्याओंका विवाह कर देंगे । इत्यादि कई वातोंसे राम लक्ष्मणको समझाया । सुग्रीवके मन्त्री जाम्बूनंदने कहा कि एक वार रावणने भगवान् अनन्तवीर्य कैवलीके समवशरणमें अपनी मृत्युका कारण पूंछा था, तब उसे उत्तर मिला था कि जो कोटिशिला उठावेगा उसीके हाथोंसे तेरी मृत्यु होगी। यह वृत्तांत सुन पहिले राम लक्ष्मण अपने साथियों सहित विमान में बैठ कोटिशिलाकी यात्रार्थ गये । वहां कोटिशिलाकी वंदना कर लक्ष्मणने उसे घुटनों तक उठाया।