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दूसरा भाग ।
आगेको चल दिये ।
समझा बुझा दिया और तीनों गुप्त रीतिसे (१६) और वहां से चल कर वंशस्थल नगर आये । इस नगर के पास एक वंशधर नामक पर्वत था । रात्रि के समय उस पर्वत पर घर और भयानक शब्द हुआ करते थे । अतएव नगरवासी नगर छोड़ कर चल दिया करते थे । जब ये नगर में आये तब शाम होने को थी । नगरवासी नगर छोड़ २ कर अन्यत्र जा रहे थे । रामने नगरवासियोंसे जानेका कारण पूंछा । कारण जानने पर परम साहसी राम, लक्ष्मणने उसी पर्वत पर रात्रिको रहनेका विचार किया । सीताने भावी भयकी आशंका से रात्रि में पर्वत पर रहने की मनाई की । परन्तु वीर भ्राताओंने नहीं माना और पर्वत पर गये | वहां युगल परम तपस्वी साधुओंके दर्शन प्राप्त हुए । पूजन, वंदन के पश्चात् सीताने नृत्य किया । इन्हीं मुनियों पर एक दैत्य प्रतिदिन उपसर्ग किया करता था । उसीका पर्वत पर भया - नक शब्द होता था । इन्होंने अपने ही बलसे उस दैत्यके उपसर्गको नष्ट किया । उपसर्ग दूर होते ही दोनों साधु-श्रेष्ठों को कैवल्य-ज्ञान उत्पन्न हुआ । और समव- शरणकी रचना हुई ।
(१७) समवशरण में देशभूषण कुलभूषणका पिता जो मरकर गरुड़ेन्द्र हुआ था, आया । उसने जब यह सुना कि मेरे पूर्व जन्मके पुत्रोंका उपसर्ग राम-लक्ष्मणने दूर किया है तब वह बड़ा प्रसन्न हुआ और इनसे कहा कि आपकी जो इच्छा हो सो मांगो | इन्होंने उत्तर दिया कि हमें किसी बातकी इच्छा नहीं है | यदि आपका आग्रह ही है तो यदि हम पर कोई विपत्ति कभी आवे तो हमारी सहायता करना ।