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प्राचीन जैन इतिहास । १०५ तीनोंने उसे खाया । लक्ष्मण रामचन्द्रकी आज्ञा लेकर नगर देखने गये । वहां सुना कि नगरके राजा शत्रुदमन अपनी पुत्रीका विवाह उसके साथ करेगा जो उसके हाथकी शक्तिकी चोटको झेल सकेगा। लक्ष्मण बड़े बलवान् थे । और ऐसी २ बातोंको कुछ नहीं समझते थे। वे कायर नहीं थे, जो आपत्तिके भयसे डर जाते । किन्तु लक्षमण वीर थे और वे स्वयं आपत्तियोंको बुलाते थे । आपके इसी साहसका प्रताप था जो जाते थे आपत्तियोंके अग्निकुण्डमें, परन्तु वही आपत्ति अग्निकुण्ड उनके लिये सरोवर हो जाता था जिसमें से सुखदायी रत्नोंको वे पाते थे। अपने इसी स्वभावके अनुसार आप राजसभामें जा पहुंचे और राजासे कहने लगे कि शक्ति चलाओ। जितपद्मा भी नहीं बैठी थी। वह इन्हे देखकर मोहित हो गई और शक्ति लग जानेकी आशंकासे इन्हें इशारेसे शक्तिकी चोट झेलनेके लिये मनाई करने लगी। इन्होंने भी कहा कि भय मत करो । मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकता। इनका आग्रह देख शत्रुदमनने पांच शक्तियां चलाईं। इन्होंने दो शक्तियोंको दोनों हाथोंमें झेला दोको बगलोंमें और एकको दांतोंसे दबाया। इनकी बल-परीक्षा कर लेने पर शत्रुदमनने जितपद्माके विवाहके लिये कहा। परन्तु इन्होंने कहा कि मेरे ज्येष्ठ-भ्राता-जो कि समीप ही हैं-को आज्ञाके विना मैं नहीं कर सकता । तब सब मिल कर रामचंद्रके समीप आये और उनकी भक्ति करने लगे । यहां तक कि शत्रुदमन राजा तो उनके सामने नृत्य ही करने लगा। जितपद्माका विवाह हुआ । राम, लक्ष्मणादि कुछ दिनों तक यहां रहे । एक दिन लक्ष्मणने जितपद्माको