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दूसरा भाग।
इस प्रकार उसे क्रोध उत्पन्न करनेवाली जब बातें कहीं तघ क्रोधित हो इन्हें मारनेको उद्यत हुआ । बस, चट लक्ष्मणने सिंहासन पर चढ़ अतिवीर्यको बांध लिया और उसके सभासदोंसे कहा कि यातो भरतकी आधीनता स्वीकार करो अन्यथा तुम्हारी भलाई नहीं । तब सब सभासदोंने भरतकी जय बोली। अतिवीर्यको बांध कर डेरे पर लाये । और भरतके आधीन रहनेका आदेश किया । परन्तु उसने संसारको अप्तार जान दीक्षा धारण की।
और अपने पुत्र विजयरथको राज दिया । राम, लक्ष्मणने विजयरथका अभिषेक किया। विजयरथने अपनी बहिन परम सुंदरी रत्नमालाका लक्ष्मणके साथ विवाह किया।। तथा भरतसे भी जाकर मिला । और उन्हें भी अपनी दूसरी बहिन विजयसुंदरी दी। इस प्रकार गुप्त रीतिसे राम, लक्ष्मण ने भरतका कष्ट दूर किया। क्योंकि भरतसे अतिवीर्य बलवान् राजा था । भरतको अपना उद्धार करनेवाली नृत्यकारिणियोंका रहस्य प्रगट नहीं होने पाया । वह इन्हें कोई देवी ही समझते रहे । इस प्रकार शांति हो जाने पर भरत गृहस्थावस्थाके अपने शत्रु अतिवीर्य मुनिकी वंदनाको गये । और वंदना कर अयोध्या लौट आये। रामचंद्र भी पृथ्वीधरके राज्यमें लौट आये । और वहां कुछ दिनों तक रहे । लक्ष्मणने वनमालाको अपने जानेके सम्बन्धमें समझा बुझा कर धैर्य बंधाया। और फिर एक दिन छुपी रोतिसे तीनों उठ कर चले गये ।
(१५) और दोमांजलि नगरके पास वन में जाकर ठहरे । वहाँ लक्ष्मणने भोजन बनाया । दाखोंका रस तैयार किया । और