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प्राचान जैन इतिहास । १०३
हुए यह सब देख सुन रहे थे । वनमालाका कथन समाप्त होते ही लक्ष्मण प्रगट हुए और उसे अपना परिचय दिया । वनमाला बड़ी प्रसन्न हुई । और दोनों रामके पास आये । इधर वनमाला के सेवक भी ढूँढ़ते २ राम, लक्ष्मणके पास आ पहुँचे । वनमालाको यहाँ बैठी देख और रामादिका परिचय पा नगर में गये । वहां अपने स्वामी से सब वृत्तान्त कहा । उसने बड़ी प्रसन्नता से रामचन्द्र, लक्ष्मण और सीताका नगर प्रवेश कराया ।
(१४) यहां पर रामचंद्र, लक्ष्मणने सुना कि नन्द्यावर्तके राजा अतिवीर्यने भरतको लिखा है कि तुम मेरे आधीन होकर रहो | इस पर शत्रुघ्नने अतिवीर्यके दूतका बड़ा अपमान किया तथा रौद्रभूत ( पृथ्वीधरका मन्त्री ) के साथ अतिवीर्यकी सेनामें धाड़ा डाल कर उसके ७०० हाथी और कई हजार घोड़े लूट लाये । इस पर दोनोंका परस्पर युद्ध होनेवाला है। अतिवीर्यने पृथ्वीधरको सहायतार्थ बुलानेके लिये दूत भेजा था । दूतके द्वारा यह सब समाचार जान पृथ्वीघर के पुत्रको साथमें ले राम, लक्ष्मण और सीता नन्द्यावर्त गये । सीताने कहा कि रघुकुलका अपमान करनेवाले अतिवीर्यको अवश्य ही दण्ड देना उचित है । राम, लक्ष्मण ने सीताको उनकी इच्छा पूरी होनेका आश्वासन दे विचार किया कि युद्ध करनेसे तो दोनों ओरकी सेना निरर्थक मारी जावेगी । अतएव दोनोंने नृत्यकारिणीका रूप धारण किया और अतिवीर्यकी सभा में पहुंचे । इनके नृत्य और गायन से अतिवीर्य व उसकी सभा जब मोहित हो गई तब लक्ष्मण ने कहा कि अतिवीर्य ! बलवान् भरतसे तू क्यों युद्ध करता है, देख, मारा जायगा !