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प्राचीन जैन इतिहास । १०१
और औंधा कर दिया । रामचन्द्रने कहा कि जिन शासनकी आज्ञानुसार ब्राह्मण जैन साधु आदिको कष्ट देना अनुचित है तब ब्राह्मणको लक्ष्मणने छोड़ा।
(११) फिर आप तीनों वहांसे चल दिये । रास्तेमें वर्षा होने लगी। तब आप एक वट वृक्षके नीचे ठहर गये । उस वृक्षके रक्षक यक्षने अपने स्वामीसे कहा कि कोई परम प्रतापी पुरुष वृक्षके नीचे आये हुए हैं । उसने आकर देखा और इन्हें बलभद्र नारायण जानकर इनके लिये विद्याबलसे सुन्दर मायामयी नगरकी रचना की । इस यक्षका नाम नूतन था ।
(१२) रामचन्द्रके कारण इस नगरका नाम रामपुर प्रसिद्ध हुआ । उस अग्निहोत्री ब्राह्मणने जिसने अपनी शालासे इन्हें निकाला था, आकर जङ्गलमें नगर देखा तब उसे आश्चर्य हुआ । उसने सब हाल पूछा । एक स्त्रीने उत्तर दिया कि महा प्रतापी रामचंद्रके कारण यह सब हुआ है । वे बड़े दानी हैं । और श्रावकोंको बहुत दान देते हैं । तब उसने अपनी स्त्रीके सहित चारित्र शूर नामक मुनिके पास श्रावकके व्रत लिये और फिर अपने पुत्रको कंधे पर बिठला रामके पास आया । मंदिरोंके दर्शन कर नब रामके महिलोंमें गया तब लक्ष्मणको देखते ही भागा । राम, लक्ष्मणने बुला कर उसे धैर्य बंधाया और खूब दान दिया । सज्जन पुरुष अपने शत्रु पर भी उपकार विना क्रिये नहीं रहते, यही रामचंद्र की इस कथासे शिक्षा मिलती है । अस्तु, कुछ दिनों तक उस नगरमें रह कर रामचंद्रादि आगे जानेको उद्यत हुए । तब