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दुसरा भाग।
फिर गुप्त रीतिसे-क्योंकि कल्याणमाला उन्हें आने नहीं देती थी-चल दिये।
(९) मेकला नदीको पार कर विन्ध्याटवीमें पहुंचे। वहां म्लेच्छोंसे युद्ध कर उन्हें परास्त किया । म्लेच्छोंका अधिपति रामके पास आकर अपनी कथा कहने लगा । रामने बाल्याखिलको छोड़ने की आज्ञा दी और कहा कि तुम बाल्याखिल्लके मन्त्री होकर उसका राज्यकार्य संभालो तथा इस पाप-कर्मसे विरत हो। उसने बाल्याखिल्लको छोड़ दिया। और आप मन्त्री होकर रहने लगा। इसका नाम रौद्रभूत था । इसके मन्त्री हो जानेसे म्लेच्छों पर भी बाल्याखिल्लकी आज्ञा चलने लगी। यह देख सिंहोदर बाल्याखिल्लसे अब डर कर चलने लगा। जब बाल्याखिल्ल अपने राजा मैं पहुंचा तब कल्याणमालाने बहुत उत्सव मनाया ।
(१०) इस प्रकार एक कन्या और राज्यका उद्धार कर रामचंद्र आगे चले। और एक ऐसे मनोज्ञ देशमें पहुंचे जिसके मध्यमें ताप्ती नदी बहती थी। इस देशके एक निर्जन वनमें सीताको बहुत जोरसे तृषा लगी । वहाँ जल नहीं था । तब धैर्य बँधाते हुए सीताको अरुण नामक ग्राममें लाये । यहां कृषक-वर्ग रहता था । ब्राह्मण भी रहते थे। एक ब्राह्मणकी अग्निहोत्रशालामें ये तीनों ठहर गये । ब्राह्मणीने इनकी बहुत कुछ सेवा की और जल पिलाया । जब वह ब्राह्मण आया और इन्हें अग्निहोत्रशालामें ठहरे देखा तब इनसे और ब्राह्मणीसे लड़ने लगा। लक्ष्मणको बड़ा क्रोध आया ! उसने ब्राह्मणको उठा कर घुमाया