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प्राचीन जैन इतिहास। ९९ रमें भी ऐसा ही हुआ । तब लाचार होकर एक दिन आधी रातके समय आप इस नगरसे चल दिये । और नलकूबर नगर पहुँचे ।
(८) वहाके नरेश बाल्याखिल्ल की पुत्री कल्याणमाला पुरुष वेषसे राज्य कर रही थी। जब उस नगरको एक सरोवरी पर लक्ष्मण पानी लेने गये तब कल्याणमाला भी घूमते घूमते उधर आ निकली । वह इन पर आसक्त हो गई । लक्ष्मण को बुला कर सब वृत्तान्त पूछा और कहा कि यहीं रहो । जब उन्होंने कहा कि मेरे साथ मेरे भ्राता और भाबी भी हैं तब कल्याणमालाने उन्हें भी बुलाया और और खूब आदरसत्कार किया । भोजनके पश्चात् कल्याणमालाने जब अपना स्त्री वेष धारण किया तब रामने कारण पूछा कि तुमने पुरुष वेष क्यों ले रक्खा है ? कल्याणमालाने कहा कि यह राज्य सिंहोदरके आधीन है । उससे यह सन्धि है कि मेरे पिताके यहाँ पुत्र होगा तो उसे राज्य मिलेगा अन्यथा पिताके पश्चात् राज्य सिंहोदर लेलेगा। जब मेरा जन्म हुआ तब पिताने पुत्र उत्पन्न होनेकी प्रसिद्धी की । इसलिये मैं पुरुष वेषमें हूं। मेरे पिताको म्लेच्छ लोग पकड़ लेगये हैं। इस समय राज्यकार्य मैं ही चला रही हूं । पिताके वियोगसे माता बहुत दुखी हैं । यदि आप हमारी सहायता करें तो बड़ी कृपा होगी। यह कहते २ कल्याणमाला दुःखके भावेशसे भूर्छित हो गई । सीताने उसे गोदीमें लेकर शीतोपचार किया । मूर्छा दूर होने पर राम, लक्ष्मणने धैर्य बंधाया । तीन दिनों तक वहां रहे ।