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________________ दूसरा भाग। आवश्यकता है ? वह हमारा सेवक है । उसके अपराध पर दण्ड देना हमारा काम है । भरतको इसके बीचमें पड़ना अनुचित है। लक्ष्मणने कहा कि वजकर्ण सजन और धर्मात्मा है । तुम्हे उससे प्रीति कर लेना उचित है । अन्यथा तुम्हारा मला नहीं । इस प्रकार कुछ देर तक कहा सुनी होनेके पश्चात् सिंहोदरकी आज्ञानुसार उसके सामंत लक्ष्मणसे युद्ध करने लगे। लक्ष्मणने सबको परास्त किया । फिर सिंहोदर स्वयं युद्ध करने आया । उससे भी लक्ष्मणने युद्ध किया और उसे बाँध लिया । सिंहोदरके बंधते ही उसकी सेना तितर-वितर हो गई। रानीने आकर लक्ष्मणसे अपने पति सिंहोदरकी भिक्षा मांगी । लक्ष्मण सबको रामके पास लाये । सिंहोदर रामसे प्रार्थना करने लगा कि कृपया मुझें छोड़ दो और आप जैसा उचित समझो, मेरे राज्यकी व्यवस्था कर दो। रामचन्द्रने बज्रकर्णको बुलाया। वजकर्णने आकर सिंहोदरको छोड़नेकी रामसे प्रार्थना की। रामने दोनोंमें मित्रता करवाकर तथा सिंहोदरका आधा राज्य वज्रकर्णको दिलबाकर सिंहोदरको छोड़ दिया । वज्रकर्णने विघुदङ्गको सेनापति बनाया । (७) वजकर्णने अपनी आठ कन्याओंका लक्ष्मणके साथ वाग्दान किया तथा सिंहोदर आदि राजाओंने भी अपनी ३०० क यायोंका वाग्दान किया । लक्ष्मणने इन कन्यायोंके साथ विवाह नहीं किया यही उत्तर दिया कि हम रा स्थान निश्चित हो जाने पर हम वि. वाह करेंगे । र मचन्द्र जहाँ जाते वहाँ ही ऐसे मिल जाते कि व के निवासी आपको अन्यत्र नहीं जाने देते थे । दशङ्ग नग
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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