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________________ (८६) रहा है, अतः इसमें कुछ कारण होना चाहिए। किसी भी हालत में मुझे अपनी सासु से यह समाचार बतला देना चाहिए। नहीं तो मेरे ऊपर यह दुःसह कलंक लग जाएगा। यह सोचकर बाहर निकलकर सासु सुदर्शना के पास आकर उसने धीरे से उठाया, उसने पूछा कि वत्से ! अभी यहाँ आने का कारण क्या है ? वसुमती ने सारी बातें कह दी, उसने कहा कि यहाँ परपुरुष का संभव नहीं निद्रावश तुमको भ्रम हुआ होगा। वसुमती ने कहा, माताजी ! आप ही चलकर देखें, सुदर्शना ने वहाँ जाकर देखा तो वह उसका पुत्र नहीं था, और गाढ निद्रा में सो रहा था। सुदर्शना ने ज़ोर से पुकारा 'दौड़ो-दौड़ो' एक अपूर्व मनुष्य जात अथवा चोर होकर मेरे घर में प्रविष्ट हो गया है, सुनते ही ' मारो पकड़ो' यह कहते हुए सभी परिजन वहाँ पहुँच गए, क्या है ? क्या है यह कहते हुए बहुत लोग इकट्ठे हो गए। समुद्रदत्त श्रेष्ठी भी उठकर बोले, प्रिये ! किसने चोरी की है ? कलकल णब्द सुनकर, उठकर उस पुरुष ने भी कहा, माताजी ! किसने चोरी की है ? जो आप ऐसा बोलती हैं, यहाँ तो कोई दुष्ट दिखता नहीं है तो फिर आप इतनी उद्विग्न क्यों हैं ? उसकी बात सुनकर सुदर्शना ने उससे पूछा, तुम कौन हो ? किसके लड़के हो ? मेरे घर कैसे आए ? दुष्ट ! तुम मुझे माता क्यों कहते हो? मेरे पुत्र के बिछौने पर आकर तुम क्यों सो गए ? मेरे पुत्र धनपति को तुमने कहाँ रख छोड़ा ? सुदर्शना के कठोर वचन सुनकर उसके चित्त में आश्चर्य हुआ । वह अपने शरीर को बार-बार देखने लगा । बड़ी देर तक अपने शरीर को देखने पर उसका मुंह काला हो गया। उड़ने की इच्छा से आकाश की ओर देखने लगा “वुड-वुड" इस प्रकार अपनी विद्या का जाप कर उड़ना चाहा, किंतु भूमि पर गिर पड़ा।
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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