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________________ (८०) सुंदरि ? सुरासुर को जीतनेवाले कामदेव तुम्हारे ऊपर अत्यंत प्रसन्न हैं, जिससे इसी जन्म से तुम को इष्ट जन प्राप्त कराया है। यह सुनकर वह बाला लज्जित हो गई और उसने अपना मुख नीचे कर लिया, इतने में चित्रगति भी वहाँ आ गया । तब मैने कनकमाला से कहा कि प्रिए ? यही मेरा मित्र हैं । इसी ने तेरे वियोग में आत्महत्या से मुझे बचाया । तुम को इस प्रकार प्राप्त करने का उपाय भी इसीने बतलाया और अब इसकी ही सहायता से आगे का कार्य भी सिद्ध होगा । अब लज्जाभय को छोड़कर अपना वेश इस को दे दो क्यों कि तुम्हारा वेश धारण करके यह बाहर जाएगा। मेरे कहने पर उसने अपना वेश दे दिया और हम दोनों मदन के पीछे जाकर छिप गए। चित्रगति उसका वेष धारण कर बाहर निकलकर डोली में चढ़ गया। उसके निकलने पर मैंने कहा, सुंदरि ? अब क्या करना चाहिए ? मुख नीचा करके कंपती हुई उसने कहा, प्रियतम ? मैंने आपको प्राप्त किया, अब आपकी जैसी इच्छा हो। आप को जो उचित लगे वह करें, उसके ऐसा कहने पर मदनदेव को साक्षी करके मैंने उसके साथ गांधर्व-विवाह किया । कमशः भय छोड़कर उसके साथ रमण करके आलिंगन करके उसके साथ सो गया। नींद टूटने पर मैंने कहा, प्रिए ? अब हम चलें, क्यों कि ऐसा काम करके यहाँ रहना उचित नहीं है। लम्बी साँस लेकर उसने कहा, प्रिए ? मेरा मर जाना ही अच्छा था क्यों कि मेरे निमित्त आपके ऊपर विपत्ति आएगी । नरवाहन बड़ा प्रचण्ड है, उसके पास अनेक विद्याएँ हैं, भागने पर भी वह पीछा करके हम दोनों को पकड़ सकता है, नाथ ? आप के विरह में उतना दुःख नहीं था जितना कि आपकी विपत्ति की कल्पना से हो रहा है । मैं अभागिन हूँ, अतः आपको
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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